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25 Mar 2023 · 1 min read

कवि की कल्पना

हरे हरे शामियाने में
अमलतास के झूमर
श्वेत सलोनी कामिनी
झरे हवा में करती घूमर
नैन मटक्का संध्या संग
करे सिंदूरी गुलमोहर
पात पात झूम रहे
पीत कृष्णचूड़ा मनोहर

ओस लिख रही प्रेम पाती
बाँच रही सुनहरी सहर
पा मलय बयार चुंबन
नदिया रही सिहर सिहर
सात रंग का सेहरा पहने
इठला रहा दूल्हा अम्बर
निकली बूँदों की बारात
गाजे बाजे टिपर टपर
दुल्हन सी सज रही
अवनी ओढ़े हरी चुनर

किन्तु अब देखता कौन
दृश्य रमणीक मनोहर
सुन रही क्या संसृति
सूखे पत्तों की मर्मर
बिरहन की छाती सी
दरक रही धरा धरोहर
म्रियमाण पत्थर मूरत
आँखें सूनी मूक अधर
मृदुल मनोरम सृष्टि थी
या कवि की कल्पना भर

रेखांकन।रेखा ड्रोलिया

Language: Hindi
70 Views
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