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15 Dec 2022 · 1 min read

कविता

कविता जब बह निकली
काग़ज़ पर कहाँ उतरी
पहले उतरी अंतर्मन पर
ज्यूँ नाव उतरती पानी पर
शब्दों की पतवार थामे
भाव हौले हौले गोते खाते
रह रह कर मन के गागर
कभी कल्पना के सागर
विचारों की लहर लहर
उत्ताल कभी शांत डगर
नाव से बतियाती जाती
मार हिलोरे गगन चूमती
कभी खंगाल डालती मन
कभी टूट जाती अंतर्मन
फिर बनती एक लहर
मेरी कविता जाती तर

रेखांकन।रेखा

Language: Hindi
132 Views
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