*”कविता’*
नमन मंच -??जय माता दी
*कविता*
कोरे कागज पर मन की बातों को लिख कविता बन जाती है।
अंतर्मन में उम्मीद जगाकर शब्दों की नई दिशा बतलाती है।
जब दर्द बनकर आह उभरती है तो समय की पहचान कराती है।
लयबद्ध तरीकों से शब्दों को पिरोकर एक सृजन करवाती है।
मन की आवाज सुनकर आत्मविभोर हो शब्दो का चुनाव कराती है।
कलम की तेज रफ्तार से ही ना जाने कितने काव्य पाठ रचाती है।
मन की ध्वनियों से आवाज निकल खुद ब खुद चलते ही जाती है।
शब्दों के उलटफेर में सोचते हुए कहाँ से कहाँ तक पहुंचा जाती है।
मन के चंचल मनोभावों को अपने अंदर खुशियाँ दे जाती है।
कभी कभी खामोश निगाहों से कविता की पहचान कराती है।
स्वप्नों में दूर तलक शब्दों को गढ़ते हुए ना जाने कहाँ तक उड़ा ले जाती है।
शाश्वत सत्य की ओर ले जाकर जीवन में परिवर्तन कर जाती है।
एक दूसरे के साथ में रहकर ही कविताओं का माध्यम बना जाती है।
मनभावन शब्दों में सजे हुए पारखी नजर दे जाती है।
शब्दों के माध्यम से *कविता* नव निर्माण कार्य कर जागृति ले आती है।
*शशिकला व्यास*