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6 Mar 2019 · 1 min read

कविता —‘टूटा सिग्नल’

***
आज तोड़ा है
उसने ‘सिग्नल’
आफिस से लौटते वक्त
देखकर लाल-बत्ती
अनदेखा कर गया
नहीं सुन पाया
सिपाही की
कर्कश सीटी की आवाज
या फिर
सुनना नहीं चाहा
मस्तिष्क
तनाव से भरा था
इंद्रियाँ निष्क्रिय…
लाल सिग्नल
बास की लाल-लाल
घूरती दो आँखेंं
लगीं थीं उसे
जिनसे बचकर
भाग रहा था ‘वह’
बदहवास सा
सुकून पाने के लिए
अपने छोटे से घर की ओर
दुधमुंहे बच्चे की
किलकारियों के बीच
बेटी की दौड़कर
लिपटने की खुशी पाने को
और प्रतीक्षा करती
प्यार भरी मूक
दो गहरी
‘आंखों’ की झील में
डूब जाने के लिए
जो उसे अभी तक
जिंदा रखे हैं।

डॉ मंजु लता श्रीवास्तव

Language: Hindi
262 Views
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