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16 Mar 2022 · 1 min read

कविता कहाँ ….

कविता कहाँ ….

कविता कहाँ सिर्फ़ कविता होती है
रंग बिरंगे ख़यालों की ज़ुबान सी होती है …

छिपी हुई हसरतों को बेनक़ाब करती
दिल को परत दर परत खोलती ..
अल्फ़ाज़ों की दुनिया में बसर करती है…
कविता कहाँ सिर्फ़ कविता होती है

पलकों पर झूलते ख़्वाबों की नैया बना
ख़ुद माँझी बन जाती है
शब्दों की नदी बना साहिल को खोजती रहती है …
कविता कहाँ सिर्फ़ कविता होती है

पुराने संदूक से निकली हसरतों का
बना पुलिंदा ,यादों को फिर जवाँ करती है
भूले बिसरे लम्हों को फिर से जीने की चाह करती है …
कविता कहाँ सिर्फ़ कविता होती है

रूह की दबी हुई ख़्वाहिशों को लिबास पहना
हक़ीक़त में ना सही
कोरे पन्नों में ही सँवारने का काम करती है …
कविता कहाँ सिर्फ़ कविता होती है

Language: Hindi
1 Like · 246 Views
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