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10 Aug 2021 · 1 min read

कलम के घाव

ये कलम मेरी शुरू हुई तो फिर ना ये रूकती है।
कोई कितना भी डराए धमकाए ये नही झुकती है।।
कुछ तुम्हारी कुछ हमारी दास्तान बयां करती है।
ये कलम है दोस्तों नश्तर से भी तेज चुभती है।।

नश्तर के घाव समयांतर पर खुद भर जाते हैं।
कलम के घाव दिलों को छलनी कर जाते हैं।।
मत लड़ना मत अड़ना गर अवसर प्रतिकूल हो।
कागज पर उभरे शब्द पूर्ण असर कर जाते हैं।।

वीर कुमार जैन
10 अगस्त 2021

Language: Hindi
Tag: मुक्तक
1 Like · 2 Comments · 355 Views
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