Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Dec 2019 · 4 min read

*”कर्मयज्ञ”*

“कर्म यज्ञ”
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा ।
जो जस करहिं तस फल चाखा।।
तुलसीदास जी की चौपाई यह प्रमाणिकता लिये हुए है कलयुग में रामायण व भागवत पुराण गीता की ज्ञानवर्धक बातें हमें संकेत देते हुए सचेत करती रहती है लेकिन कुछ ही व्यक्ति इन अनमोल वचनों को जीवन में ग्रहण कर अमल में लाते हैं वैसे तो हर व्यक्ति अपने कर्म बंधन में बंधकर कार्यों को सुचारू रूप से पूर्ण करता है।
जीवन में कर्म भूमि प्रधान है मानव शरीर कर्म की प्रधानता लिए हुये ही अपने भाग्य को बनाता एवं बिगाड़ता है। हमारे कर्मों के आधार पर ही सुख दुःख भी निर्भर करते हैं और आते जाते रहतें है कर्म फल से ही सुखद अनुभव एवं दुखद घटना के परिणाम सामने आते हैं।
कर्म की शारीरिक श्रम से ही नहीं वरन हमारे शरीर से जुड़े आत्मा ,मन ,आचार विचार, हावभाव , संस्कारों व भावनाओं इन सभी क्रियाओं से सम्पन्न होता है।
जीने के लिए भरण पोषण आवश्यक होता है इनके लिए किया गया कर्म के अलावा दैनिक जीवन में व्यवहारिकता ,माता -पिता, भाई ,बंधु सखा, रिश्तेदारों के साथ जो भी व्यक्तिगत रूप से कर्म करते हैं ये सभी कर्म यज्ञों में समाहित है। इन सभी कार्यों का प्रतिफल यज्ञ की श्रेणी में आता है जब हम अच्छे कर्म करते हैं तो उसका फल अच्छा मिलता है और जब गलत तरीके से कर्म करते हैं तो उसका परिणाम गलत ही मिलता है याने कष्टों व दुःखों के पल हमारे सामने दिखाई देने लगते हैं।
कर्मों का ही ये मायाजाल है शरीर में जितनी बीमारियाँ उतपन्न होती है वह भी कर्मों की ही देन है।
तुलसीदास जी की चौपाइयाँ जीवन की सत्यता को उजागर करती है अगर हम अच्छे कर्म करते हैं तो उसका लाभ हमें सुखद अनुभूति अनुभवों के रूप में मिलती है “अच्छे काम का अच्छा नतीजा” यह चरितार्थता है जो जीवन मे सतत विकास चाहता है उसे सोच समझकर ध्यान पूर्वक कर्म करना चाहिए जो भी कर्म कर रहे हैं वह एक अनुष्ठान के समान है और भूल हो जाने पर ईश्वर से व्यक्तियों से क्षमा याचना भी करनी चाहिए।
दैनिक कार्यों में नित्य प्रति सूची तैयार करते जाना चाहिए ताकि हमें ज्ञात होते रहे कहाँ गलती हो रही है फिर उसे सुधारने का मौका मिलता रहे आइन्दा से उन गलतियों को अच्छे तरीके से यज्ञ करने में कहाँ तक सफल हुए यह ज्ञात होता रहता है।
“मनसा वाचा कर्मणा” के रास्ते पर चलकर अभ्यास एवं आभास होने लगता है।
राजा जनक जी अच्छे कर्मों के कारण माता सीता जी की प्राप्ति हुई थी उन्होंने पुत्री के रूप में पाकर धन्य धन्य हो गए थे और उनके विवाह प्रस्ताव के रूप में स्वयंवर रचा था जो भी पुरुष शिव जी के धनुष को उठायेगा उसी के साथ में जनक नंदिनी सीता जी का व्याह होगा।
स्वयंवर महोत्सव में हजारों की संख्या में महान योद्धा मौजूद थे लेकिन बारी बारी से सभी महान व्यक्ति ने धनुष उठाने का प्रयत्न किया उठाना तो दूर किसी ने हिला भी नही सके जब सारे बलशालियों ने हार मान लिया तब राजा जनक कुछ देर के लिए चिंतित हो गये उन्हें लगा इस भरी सभा में कोई भी ऐसा व्यक्ति नही है जो मेरी पुत्री से विवाह रचाये कहीं मेरा लिया हुआ संकल्प व्यर्थ चला जायेगा जनक नंदिनी सीता कुँआरी ही न रह जाये ……? ? ?
अंततः अंत में मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम जी ने सभासदों के बीच आकर सभी स्वजनों को सादर प्रणाम करते हुए कुछ ही पलों में धनुष को उठाकर प्रत्यंचा चढ़ा दी वहाँ बैठे सभी महापुरुष आश्चर्यचकित हो गए जिस धनुष को कोई हिला भी नही सका उसे श्री राम जी ने पल भर में उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ा दी है।
सारे देवगण ऊपर से फूलों की वर्षा करने लगे खुशी का माहौल छा गया राजा जनक जी बेहद खुश हुए सोचने लगे ये वीर महापुरुष ही मेरी पुत्री के काबिल वर है जो मेरी लाज रख ली है आज मेरा संकल्प पूरा हो गया है।
आखिर मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम जी के सत्कर्मों से ही यह महायज्ञ पूर्ण हुआ है जीवन मे अच्छे कर्म का फल मर्यादा में रहकर तपस्या के रूप में आज सामने प्रगट हो गया है उन कर्मों के पुण्य प्रताप से ही क्षण भर में ही धनुष उठा लिया वरना सभा मे बैठे इतने महान बलशाली व्यक्ति में साहस ही नही था ये कर्म यज्ञ की तपोबल की प्रधानता ही है।
जीवन में खामोश रहकर नेक कर्म करते रहिये लोगों की दुआएँ खुद बोल पड़ेंगी हम सभी कर्मयोगी इंसान हैं लेकिन परिश्रम व भाग्य के सहारे ही गाड़ी चलाते रहते हैं इसलिए कर्म की गठरी में अच्छे कर्मों का पिटारा रखते जाईये भाग्य स्वयं ही नैया पार करते जायेगी।
सतत ईश्वर स्मरण मन मे करते हुए कर्म करिये ईश्वर मदद कर सकते हैं लेकिन कर्म नही हमें स्वयं के बलबूते पर कर्मयज्ञ करना चाहिए जीवन में मनुष्य के दो ही सच्चे अर्थों में मित्र हैं एक तो अपने किये गये सत्कर्म और दूसरा ईश्वर याने परमात्मा बाकी हमें यही मिले हैं और उन्हें यही सब कुछ छोड़कर चले जाना है एक न एक दिन सबसे बिछड़ते हुए चले जाना है।
दैनिक जीवन में अपने क्रियाकलापों को करते समय उन सभी कार्यों को यज्ञ के फलस्वरूप ही मानें एक न एक दिन कर्मयज्ञ का परिणाम स्वरूप सुखद आश्चर्य अनुभव प्राप्त होगा …! !
जय श्री राधे जय श्री कृष्णा

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 2 Comments · 637 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

द्वंद
द्वंद
दीपक झा रुद्रा
*चलो खरीदें कोई पुस्तक, फिर उसको पढ़ते हैं (गीत)*
*चलो खरीदें कोई पुस्तक, फिर उसको पढ़ते हैं (गीत)*
Ravi Prakash
कई बचपन की साँसें - बंद है गुब्बारों में
कई बचपन की साँसें - बंद है गुब्बारों में
Atul "Krishn"
" ढूँढ़ना "
Dr. Kishan tandon kranti
कुंडलिया
कुंडलिया
गुमनाम 'बाबा'
पाँच दोहे
पाँच दोहे
अरविन्द व्यास
आओ बैठें कुछ बात करें
आओ बैठें कुछ बात करें
Meera Thakur
*** होली को होली रहने दो ***
*** होली को होली रहने दो ***
Chunnu Lal Gupta
जय गणेश देवा
जय गणेश देवा
Santosh kumar Miri
साहित्य चेतना मंच की मुहीम घर-घर ओमप्रकाश वाल्मीकि
साहित्य चेतना मंच की मुहीम घर-घर ओमप्रकाश वाल्मीकि
Dr. Narendra Valmiki
चले चलो
चले चलो
TARAN VERMA
तेरा बहुत बहुत शुक्रिया ए जिंदगी !
तेरा बहुत बहुत शुक्रिया ए जिंदगी !
ओनिका सेतिया 'अनु '
धर्म कर्म
धर्म कर्म
Jaikrishan Uniyal
ज़िंदगी तेरी हद
ज़िंदगी तेरी हद
Dr fauzia Naseem shad
🌹🙏 Bhaj man radhe krishna 🙏 🌹
🌹🙏 Bhaj man radhe krishna 🙏 🌹
Nayan singer
ये दुनिया भी हमें क्या ख़ूब जानती है,
ये दुनिया भी हमें क्या ख़ूब जानती है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
गरीबी एक रोग
गरीबी एक रोग
Sunny kumar kabira
उम्मीद का दिया
उम्मीद का दिया
Dr. Rajeev Jain
"पँ0 कृष्णराव गणेश" के जन्मदिन, 20 जनवरी पर विशेष"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
मान हो
मान हो
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
उसकी सूरत में उलझे हैं नैना मेरे।
उसकी सूरत में उलझे हैं नैना मेरे।
Madhuri mahakash
पिता,वो बरगद है जिसकी हर डाली परबच्चों का झूला है
पिता,वो बरगद है जिसकी हर डाली परबच्चों का झूला है
शेखर सिंह
..
..
*प्रणय*
2758. *पूर्णिका*
2758. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
चार दिन गायब होकर देख लीजिए,
चार दिन गायब होकर देख लीजिए,
पूर्वार्थ
लवली दर्शन(एक हास्य रचना ) ....
लवली दर्शन(एक हास्य रचना ) ....
sushil sarna
*पथ संघर्ष*
*पथ संघर्ष*
Shashank Mishra
मनहरण घनाक्षरी
मनहरण घनाक्षरी
Rambali Mishra
कंडक्टर सा हो गया, मेरा भी किरदार
कंडक्टर सा हो गया, मेरा भी किरदार
RAMESH SHARMA
मनुष्य
मनुष्य
OM PRAKASH MEENA
Loading...