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17 Jan 2023 · 1 min read

कमबख़्त ‘इश़्क

कमबख़्त ‘इश़्क भी अजीब है,
दिल बार-बार चोट खाता है ,
फिर भी ‘माश़ूका के क़रीब है ,
लाभ भुलाने की कोशिश भी हो,
पर उसे कैसे भुला पाए, जो दिल में पैवस्त हो,
ख़्वाबों और ख़यालों में जो चला आता है,
दिल को बेचैन कर रातों की नींद उड़ा जाता है,
मरीज़- ए- ‘इश्क़ चारा-गर की तलाश में ता-‘उम्र भटकता है,
दर्दे दिल की इंतिहा में फ़ना होकर ही सुकूँ पाता है।

Language: Hindi
90 Views
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