कभी जब देखोगी तुम

कभी जब देखोगी तुम,
फुर्सत के पल में उस तस्वीर को,
जिसको हम बहुत प्यार करते हैं,
और पूछोगी तब तुम यह सवाल,
कि यह इतना सुंदर कौन है,
और कहोगी तुम यह भी,
कि इसकी क्या जरूरत थी,
शर्माकर गुलाब की तरह तुम,
आ जावोगी मेरी बाँहों में।
कभी जब देखोगी तुम,
मेरे लिखे उन खतों को,
जो लिखे थे मैंने तुमको,
तुमको प्यार जताने के लिए,
अपनी वफ़ा का सबूत दिखाने के लिए,
जिनको पढ़कर बहावोगी ऑंसू तुम,
और दौड़कर तुम आ जावोगी मेरे पास।
कभी जब देखोगी तुम,
मेरा सींचा हुआ वह चमन,
जो सींचा है मैंने अपने पसीने से,
और बनाया है जो वह मंदिर मैंने,
अपने प्रेम की स्मृति चिन्ह के रूप में,
जिसमें करोगी तुम प्रार्थना,
हम दोनों की खुशी के लिए,
हम दोनों के सपनों के लिए,
और विश्वास हो जायेगा तुमको।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)