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17 Oct 2016 · 1 min read

कभी कभी

कभी कभी ये दिल करता है
यादें फिर से ताज़ा कर लूँ
कच्चे ज़ख्मों को फ़िर खुरचूं
चीज़ें फैंकुं , शीशा तोडूँ
दीवारों से सर टकराऊँ
घर के इक कोने में छुप कर
ज़ानों पर मैं सर को रख कर
आँखों से आंसू टपकाऊं
आह भरूँ और रोता जाऊँ
रोते रोते तुझे पुकारूँ

कभी कभी ये दिल करता है
वही पुरानी बुक फिर खुलूँ
जिस के अंदर तेरा इक ख़त रखा हुआ है।

मोहसिन आफ़ताब केलापुरी

Language: Hindi
240 Views
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