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9 Jul 2024 · 1 min read

कभी – कभी

बुलबुले सी है ये ज़िंदगी ,
हादसों के दोस पर फ़ना है ये ज़िंदगी ,

कभी खुशियों का जहान ,
कभी ग़मों का सामान है ये ज़िंदगी ,

कभी कुछ बहकी- बहकी सी ,
कभी कुछ लहकी – लहकी सी ,

कभी अपनों से जुदा ,
कभी गैरों पर फ़िदा सी है ये ज़िंदगी ,

कभी एहसास – ए- फ़र्ज़ ओ फ़िक्र ,
कभी एहसान- ए – करम ओ ज़र्फ़ में
डूबी सी है ये ज़िंदगी ,

कभी कुछ हमदर्द सी ,
कभी कुछ खुदगर्ज़ सी है ये ज़िंदगी ,

कभी यादों के अब्रों का कारवां ,
कभी भटके कदमों के निशां सी है ये ज़िंदगी ,

कभी सुलगती चिंगारी सी ,
कभी दहकते अंगारों सी है ये ज़िंदगी ,

कभी मुसीबत की लहरों से जूझकर आगे बढ़ती ,
कभी साजिशों के भँवर में फंसती सी है ये ज़िदगी ,

कभी गुमसुम सी ,
कभी बे -ख़ुद ग़ुमशुदा सी ,
सब कुछ समझा देती है ये ज़िंदगी ।

Language: Hindi
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