कनिष्ठ रूप में

जन्म लिया कनिष्ठ रूप में,
जीवन का अभिशाप बना,
वंचित बचपन मातृसुख से,
कौन-सा ऐसा शाप मिला,
भाभी होती मांँ समान पर
यह कैसा संताप मिला,
पढ़ना-लिखना-खाना दूभर,
पर विराट पिता का ढाल मिला,
दृढ़ इच्छाशक्ति भरकर,
दसवीं वहांँ से पास किया।
उच्च शिक्षा की चाहत लेकर
बाहर को प्रस्थान किया,
उज्ज्वल भविष्य के ऊहापोह में,
कमोबेश वही हाल रहा।
ग्रामवास का लिया फैसला,
बेड़ी पांँव में साथ रहा,
पत्नी-बच्चों का जीवन-यापन
बंँटवारा उपहार मिला,
मातु-पिता-सेवा की जब तक
चंद सिक्कों का लाभ मिला,
अंत हुआ जब उनके जीवन का,
चक्रव्यूह का जाल घिरा,
कलयुग का मैं अभिमन्यु,
परमपिता का साथ मिला।
दृढ़ करो भुजदंड प्रभु मेरे,
अंत न इस तंगहाल करो,
लहराऊँ मैं भी कुल-पताका,
ऐसा ऊंँचा मम भाल करो।
मौलिक व स्वरचित
©® श्री रमण
बेगूसराय (बिहार)