कड़ियों की लड़ी धीरे-धीरे बिखरने लगती है

कड़ियों की लड़ी धीरे-धीरे बिखरने लगती है
परिजनों से दूर होकर सामाजिक स्तम्भ की नींव
हिलने लगती है !!@डॉ लक्ष्मण झा परिमल
कड़ियों की लड़ी धीरे-धीरे बिखरने लगती है
परिजनों से दूर होकर सामाजिक स्तम्भ की नींव
हिलने लगती है !!@डॉ लक्ष्मण झा परिमल