*** ” ओ मीत मेरे…..!!! ” ***

*** आ मिल कर साथ चलते हैं ,
इस राह (जिंदगी ) पर… ;
चल कुछ नव-निर्माण करते हैं ,
इस राह पर…!
कौन जाने इस सफ़र का ,
है अंत कहाँ….. ;
आज साथ-साथ हैं ,
न जाने कल तुम कहाँ.. और मैं कहाँ….!
आ बना लेते हैं आशियाना एक , आज….;
किनारे में पड़ी , कुछ तिनके तुम ले आना..
ढेरों से कुछ मुट्ठीभर मिट्टी.. ,
मैं ले आऊँगा…
मिलकर दोनों उसे ,
एक आकार दे देंगे…
मन में बनी है कुछ तस्वीरें ,
उसमें अमिट रंग भर देंगे…
और है जो सपने अपने…,
उसे इस जहां में , परवाज़ दे देंगे…
सारथी चाहे कोई भी हो अपना…
पहिया बनकर हम चलेंगे…,
मिलकर आ साथ चलेंगे…,
इस राह में…
कठिन परिस्थितियों में भी…
” ये होंसला ” बनकर रहेगा.. ,
सिर का ताज…!!
*** अपनी जिंदगी से , टटोल कर तुम… ;
कुछ सपने चुन लेना….!
मेरे ख्वाहिशों के किताब में ,
उसे संजों लेंगे….!!
कर इरादे मजबूत.. ,
हम साकार उसे , कर लेंगे….!!!
अगर…
होंगे कड़वाहट , जिंदगी में….;
कुछ घूंट , तुम पी लेना…
और कुछ घूंट मैं पी लूंगा…!
” वक़्त ” हाथों से कब निकल जायेगा…,
पहिये लगे हैं , इनके पांवों में… ;
न ये मेरा है , न तुम्हारा…,
बस.. इनके तक़ाज़ों को ,
आ पहचान लें… ;
न जाने कब लिबास बदल जाए ,
किस्मत के…,
आ इस पल को.. ,
जरा पहचान लें…!!
*** इस राह ( जिंदगी ) की गलियों में…,
अनेक मोड़ आयेंगे..,
कई चौराहे मिल जायेंगे…
हम कहीं भटक भी जायेंगे…!!
आ हम साथ चलते हैं…,
अपनी अटूट इरादों से…,
अपनी अनुभवों की साझेदारी से…,
विपरीत बहती अपनी…
उन हवाओं के , रुख बदल देते हैं…!!
चलते-चलते इस राह पर… ,
जब कदम अपने लड़खड़ायेंगे…!
जब पांव अपने थक जायेंगे….!
हाथों की उंगलियों से…,
जब कुछ न कर पायेंगे…!
तन्हाइयों की बेड़ियों में…,
जब जकड़ा जायेंगे..!
तब….
गुज़रे उस पल की…!
उस कल की…!!
यादों को…,
मरहम बना ,
अपने “आप” को पुनः , संवार जायेंगे…!!
ओ मीत मेरे…!
आ साथ चलते हैं.. ,
इस राह पर….!!!
चलकर कुछ नव-निर्माण करते हैं.. ,
इस राह पर…!!!
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* बी पी पटेल *
बिलासपुर ( छ . ग . )
३१ / १२ / २०२१