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14 Oct 2022 · 1 min read

ओस की बूँदें – नज़्म

शीर्षक – ओस की बूंदें ( नज़्म )

निख़र आता है रूप तेरा ,
जब बूंदें ओस की छूती हैं ।
चांद भी शरमाता है ,
तेरे हुस्न से अप्सराएं रूठी हैं ।।

ये रूप यौवन दमकती काया,
प्रेम का इंद्रधनुष निकला हो ।
विरह की अमावस में जैसे ,
मिलन का एक दीप जला हो ।।

चाहत की फुलवारी बस,
अब सदा यूं ही आबाद रहे ।
मन में खुशियों की किलकारी,
अब सदा यूं ही दिलशाद रहे ।।

ये कैसी ओस की बूंदें हैं,
ये कैसा प्यार का सावन है ।
पल पल तेरा रूप सजाता,
ये मौसम तो मनभावन है ।।

© डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
©काज़ीकीक़लम
28/3/2 , अहिल्या पल्टन , इकबाल कालोनी
इंदौर , मध्यप्रदेश

Language: Hindi
1 Like · 97 Views
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