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23 Jan 2024 · 1 min read

ऐसी प्रीत कहीं ना पाई

ऐसी प्रीत कहीं ना पाई

रघुकुल रीत सदा चली आई
संस्कारों की बात निभाई
जुग जुग जिये चारों भाई
ऐसी प्रीत कहीं ना पाई।

छल कपट द्वेष ना कोई
भ्राता से बढ़कर काम ना कोई
माता पिता के आशीष से
कृपा चारों धाम की पाई।

सुख सुविधा महलों की छोड़कर
तन से वस्त्र, आभूषण उतार कर
भगवा तन पर लपेटकर
राह वनवास की अपनाई।

पादुका लेकर भरत लौटे
सिंहासन पर फिर वह सजाई
भाई ने ही भाई की राजगद्दी पर
मर्यादा से शासन की नई रीत चलाई।

हरमिंदर कौर ,अमरोहा (उत्तर प्रदेश)

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