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14 Nov 2023 · 1 min read

“एहसानों के बोझ में कुछ यूं दबी है ज़िंदगी

“एहसानों के बोझ में कुछ यूं दबी है ज़िंदगी
कर रहे है जी हजूरी भूल गए हम बंदगी
देखकर बाजार बेतबज्जो आती है शर्मिंदगी
हम हीरा लिए बैठे रहे बिक गयी सब गन्दगी”
©दुष्यंत ‘बाबा’

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