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11 May 2023 · 1 min read

एक सबक इश्क का होना

हे अभिमानी, हे स्वाभिमानी युवा
हे बालक, हे प्रेमी, हे भविष्य हमारे
अपनी बर्बादी अपने हाथों क्यों कर रहे
ये इश्क की दलदल में फंस क्यों रहे हो
अभी जो ठीक से जवान भी न हुआ
जिसे अभी तप, ज्ञान प्राप्ति करनी है
वो लाल, पीला, हरा, नीला कर रहा
अपने माता-पिता को ठग रहा
घर से दूर कहीं पे रह रहा है
पापा पढ़ाई कर रहे हो, जी पापा
आखिर देर से ही सही, पर
समय बर्बादी का पश्चाताप तो
अंत में करना ही पड़ता है
खैर सही ही है इश्क का होना भी
एक सबक भी तो दे ही जाता है

कवि:- अमरेश कुमार वर्मा
पता :- बेगूसराय, बिहार

Language: Hindi
2 Likes · 103 Views
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