एक संदेश बुनकरों के नाम
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तुम खुरदरा पहन
हमें रेशम पहनाते आए
तुम दिन रात मेहनत करके
हमें सजाते आए
तुम्हारी कला
तुम्हारी कारीगरी
तुम्हारी कल्पना
उसकी बारीकी
फिर उसके रंग बिरंगे
संयोजन का
सिलसिला
पीढ़ी दर पीढ़ी
यूँ ही चला
लम्बे पतले धागों से
हर किसी के
मनभावन
सपनों को बुना
फिर भी तुमने
अज्ञात रहना ही चुना
कहीं जरी से संजोया
कहीं पल्लू में
चार चाँद लगाए
जिस धरोहर को
सहेजने लायक़ बनाते
बचाते,पहनाते तुम
सदियों से हमें
सौन्दर्य सम्पन्न
बनाते आए
काश वो ही तुम्हें
बड़ी सी पहचान
और बड़ा सा नाम
दिला पाए
डॉ निशा वाधवा