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16 Aug 2021 · 1 min read

एक खामोश तस्वीर

जब जिन्दा थी
तब भी खामोश रहती थी
अब एक तस्वीर में समा गई
तब भी खामोश हो
बेशक हम दोनों के बीच
भाषा का संवाद ज्यादा नहीं था पर
तुम्हारी आंखें तो बोलती थी
तुम्हारे पास बैठकर
तुम्हें देख सकती थी
तुम्हें स्पर्श कर सकती थी
तुम्हारी उपस्थिति महसूस कर सकती थी
अब मैं तस्वीर को दिन में
कई कई बार देखती हूं
इसे छूती हूं पर
वह अनुभूति नहीं होती
काश तुम अभी कुछ समय और
मेरे साथ रहती
इतनी जल्दी तो एक तस्वीर में
तब्दील न होती।

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001

Language: Hindi
Tag: कविता
307 Views
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