*** ” एक आवाज……!!! ” ***

*** कहती है कुछ….
नदी , नाले और झरनें ।
हैं हम सब…..
प्रकृति के भाई और बहनें ।
हमें न बिखरो तुम…
विकास के नशे में झूम ,
हो न जाओ तुम…
अपने आप से गुम ।
रुक , ठहर और कुछ सोंच जरा ..,
नदी हैं , नाले हैं , झरनें हैं और प्रकृति है ..
तो ये जीवन है हरा-भरा ।
छत और छतरी तो…
कुछ पल और….
कुछ समय का सहारा होता है ।
लेकिन…..!
प्रकृति तो प्रतिक्षण, हरपल…
और हर वक्त सहारा देती है ।
सजा लो ज़रा इसे…..,
संवार लो ज़रा इसे…..!
अन्यथा…!
मच जायेगा धरती पर कोहराम ।
और …..
लग जायेगा… ,
जीवन की गति में पूर्ण विराम ।
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* बी पी पटेल *
बिलासपुर ( छ. ग. )
१० / ०७ / २०२१