एक अबोध बालक

एक अबोध बालक
तमन्नाओं को मेरी परवाज़ देना जरूरी नहीं है
मैं मुक़म्मल हो जाऊँगा जो तुम साथ हो मिरे ।
एहसास के कहाँ होते हैं हस्ताक्षर किसी के मयार पर
बस इतना ही काफ़ी नहीं के मैं बुलाऊँ और तू आये ।
एक अबोध बालक
तमन्नाओं को मेरी परवाज़ देना जरूरी नहीं है
मैं मुक़म्मल हो जाऊँगा जो तुम साथ हो मिरे ।
एहसास के कहाँ होते हैं हस्ताक्षर किसी के मयार पर
बस इतना ही काफ़ी नहीं के मैं बुलाऊँ और तू आये ।