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4 Jan 2022 · 1 min read

उम्मीद की किरण

समय के विषम स्थितियों में मानव
फड़फड़ाता परिंदा होता है
उम्मीदें खो जाने पर अंदर
कुछ तो जिन्दा होता है
यही तो है उम्मीद की किरण
जो उपजती नहीं अकारण

ज़ब वक़्त खिलाफ होकर
आदमी को मार जाता है
तमाम कोशिशों के बाद भी
आदमी ज़ब हार जाता है
तो फिर उम्मीद कहती है
दिल के कोने से कहीं
हल कभी न निकला है
रोने से कभी
चल उठ! समस्याओं का
कर निवारण
यही तो है उम्मीद की किरण
जो उपजती नहीं अकारण

थक के ऐसे ही बैठे रहे तो
हार जाओगे
अपने अंदर की उम्मीदों को भी
मार जाओगे
चलने का नाम ही तो है जिंदगी,
ऐसे ही बैठे रहे तो,खाक पाओगे
अपने आप को पहचानो
अरे! तुम हो असाधारण
यही तो है उम्मीद की किरण
जो उपजती नहीं अकारण
-सिद्धार्थ गोरखपुरी

Language: Hindi
Tag: कविता
157 Views
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