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4 Nov 2022 · 2 min read

उफ़ यह कपटी बंदर

जानवरों पर भी दिखने लगा है ,
इंसानों की मक्कारी का रंग ।
देखकर बंदरों का कपट जाल ,
रह गए हम तो बहुत दंग ।
बगिया उजाड़ रखी है हमारी ,
उनकी हरकतों से आ गए तंग ।
पल में आते ,पल में चले जाते ,
उछल कूद और शोर मचाकर मचाते हड़कंप ।
फटाके और डंडे बहुत आजमा चुके ,
अब डरावने मुखौटे और नकली सांप की बारी ।
इन दुश्मनों से पीछा छुड़ाने हेतु ,
हमारा हर प्रयास रहेगा जारी ।
सरकार हमारे शहर की सुनती नहीं ,
और मुहल्ले वालों की आपस में बनती नही ।
अब कौन भेजे बंदर पकड़ने वालों को ,
और कौन बुलाए लंगूर वाले को ।
सुबह से शाम तक थक जाते है दौड़ भाग कर ,
मगर ना जाने कब खत्म होगी यह जंग ।
सुबह उठते ही देखकर इनकी भद्दी सूरत ,
सारा दिन खराब चला जाता है ।
और कोई ख्याल या कोई जरूरी काम ,
सब दिमाग भूल सा जाता है ।
ईश्वर से भी कई मिन्नतें और मनौती कर ली ,
मगर वह भी सुने ना पीड़ा हमारी ।
दिनभर एक ही संघर्ष ने छीन ली ,
हमारी जीने की हर उमंग ।
काश ! ऐसा कोई चमत्कार हो जाए ,
किसी को तो अपना कर्तव्य याद आ जाए ।
और एक ही पल में आकर फ़ौरन,
इन शैतानों से निजात दिलवा जाए।
और मेरे मासूम ,नाजुक प्यारे प्यारे ,
पेड़ पौधे खुशी से ,आजादी से लहलहाएं ।
काश ! इन शैतानों का खतरा ,
इनके ऊपर से टल जाए ।
और हम भी जी भरकर मुस्काए,
खिलखिलाएं अपने प्यारे इन्हीं साथियों के संग ।
और देख सकें इनमें नीत नई बहार ,
नई खुशबू और जोशीले रंग ।

Language: Hindi
Tag: कविता
1 Like · 122 Views

Books from ओनिका सेतिया 'अनु '

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