*उनका उपनाम-करण (हास्य व्यंग्य)*

*उनका उपनाम-करण (हास्य व्यंग्य)*
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कल एक हास्य कवि हमारे पास आए और खिलखिलाते हुए कहने लगे “एक शानदार बेतुका नाम नामकरण के लिए बताइए ? ”
हम ने चकित होकर कहा “ऐसी अशुभ बातें क्यों करते हैं ? बच्चों का नामकरण तो किसी खिलखिलाते हुए नाम से ही होना चाहिए।”
वह पुनः हँसकर बोले “मैं बच्चों के नामकरण की नहीं ,अपने उपनामकरण की बात कर रहा हूँ। मुझे अपना एक साहित्यिक उपनाम रखना है । कोई बेतुका-सा नाम सुनाइए ,जो हास्य कवि के ऊपर फिट बैठ जाए।”
मैंने कहा “बेतुके नाम संसार में सैकड़ों- हजारों हैं । आप अपना नाम बेतुका ही रख लीजिए । ”
वह कहने लगे ” बेतुका नाम नहीं, मुझे कोई और नाम बताइए?”
मैंने कहा “चिड़िया – कौवा कैसा रहेगा ?”
वह बोले “यह सीधे – साधे पक्षी हैं । इन पर नामकरण अच्छा नहीं रहता ।”
“उल्लू रख लीजिए ! ”
वह कुछ देर सोचते रहे । फिर बोले “कोई और नाम सुझाइए ?”
मैंने कहा ” चमगादड़, सियार कुछ भी नाम रख सकते हैं। जंगली ,आवारा कैसा रहेगा ?”
वह बोले ” यह नाम भी अच्छे हैं,लेकिन जिस उच्च कोटि का नाम मैं चाहता हूँ, वह उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।”
निराश होकर चले गये। अब आप ही बताइए, मैं शब्दकोश से इससे बढ़िया बेतुके नाम और कहाँ से ढूँढ कर लाता ?
कवियों का कोई न कोई उपनाम होता है । वीर रस के कवि कुछ ऐसा नाम रखते हैं जिसे सुनने मात्र से ही भुजाएँ फड़फड़ाने लगें। बस यूँ समझ लीजिए कि नाम लिया और झगड़ा चालू हो गया। हर आदमी युद्ध की मुद्रा में आ जाए ,वही वीर रस के कवि का सार्थक नाम माना जाता है ।
श्रृंगार रस के कवि सुकुमार/ सुकुमारी, लाजवंती, लाजो ,शर्मीला/ शर्मीली आदि उपनाम रख सकते हैं। प्यारे – प्यारी भी अच्छे नाम हैं।
गंभीर किस्म के कवि अपना उपनाम गंभीर तो रखते ही हैं ,साथ ही साथ चिंतन मनन अध्ययन पढ़ाई आदि भी उपनाम अच्छे रख सकते हैं । उपनाम ऐसा होना चाहिए जिससे व्यक्ति का कृतित्व झलके।
सभी कवियों के उपनाम नहीं होते। मैथिली शरण गुप्त तथा श्याम नारायण पांडेय का कोई उपनाम नहीं था, लेकिन यह साहित्य के शीर्ष पर स्थापित हुए । उपनाम रहने से यह पता चलता रहता है कि अमुक आदमी कवि है । जिनका उपनाम नहीं होता उनके बारे में यह संदेह रहता है कि यह कविता लिखते भी हैं कि नहीं ? जबकि दूसरी ओर जिन व्यक्तियों के नाम के साथ उपनाम लगा रहता है ,उनके बारे में यह प्रथम दृष्टि में ही संदेह उत्पन्न हो जाता है कि यह सज्जन जीवन में कभी न कभी कविताएँ अवश्य लिखते रहे होंगे । बात सोलह आने सच निकलती है । जब उनसे पूछा जाए कि क्या आप कविताएँ लिखते थे ? तब वह कहते हैं ” हाँ मैं युवावस्था के प्रभात में कविताएँ लिखता था । बाद में घर- गृहस्थी तथा रोजगार के चक्कर में सब चौपट हो गया । आपको कैसे पता चला ?”
हम बताते हैं कि आप का उपनाम इस बात का द्योतक है कि आप कभी-कवि रहे थे । वह प्रसन्न हो जाते हैं ।
उपनाम रखने से बहुत से फायदे हैं ।अगर मान लीजिए किसी कवि ने किसी पर कोई कटाक्ष कर दिया और वह नाराज हो गया। तब पूरे शहर में घूमता रहेगा ,उसे उपनाम वाले कवि का पता मालूम नहीं हो पाएगा, क्योंकि उपनाम से उसके मोहल्ले वाले उसे नहीं जानते और उसके नाम से उसे काव्य- जगत में पहचाना नहीं जाता। इस तरह आदमी का दोहरा व्यक्तित्व हो जाता है। इसे कहते हैं जुड़वाँ भाई अथवा जुड़वाँ बहनें । दोनों अलग-अलग रूपों में विचरण करते रहते हैं और एक की छाया दूसरे पर नहीं पड़ती ।
बहुत से लोग निजी जीवन और साहित्यिक जीवन को अलग-अलग रखते हैं । दोनों के मामले में उनके मानदंड अलग होते हैं । इसलिए दफ्तर में जो आदमी दनादन रिश्वत खा रहा होता है ,उसके बारे में किसी को भी अनुमान नहीं हो सकता कि यह सदाचारी, सत्यव्रती ,शिष्टाचारी, ईमानदार ,वीतरागी आदि टाइप के उपनाम से कविताएँ लिखते हैं । इसी तरह बहुत से लोग देखने में बौड़म टाइप के लगते हैं लेकिन उनके गंभीर उपनाम काव्य – जगत में छाए रहते हैं । लोग समझते हैं कि यह सीधा साधा आदमी घर से दफ्तर तक जाता है और दफ्तर से घर आ जाता है । यह क्या जाने हँसना- गाना ! लेकिन छुपे रुस्तम होकर ऐसे लोग उपनाम की बदौलत अपना खेल खेलते रहते हैं ।
उपनाम न हो तो एक दिन हास्य-व्यंग्य लिख लो, अगले दिन थाने में सौ शिकायतें दर्ज हो जाएँगी कि यह हमारा मजाक उड़ा रहे थे !
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*लेखक : रवि प्रकाश* ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451