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18 Jan 2023 · 1 min read

इस बार फागुन में

खिला टेसू पलक भीगी
मिलो इस बार फागुन में।
चुनरिया भी तनिक बहकी
मिलो इस बार फागुन में।।

हुए शाखों के रक्तिम से,
कपोलों को तनिक देखो।
कली रचने लगी चुपके
प्रणय के छंद मत रोको।

हवा हर पात को छूकर।
हुई कुछ बावरी लगती।
कुसुम के कान में कहती,
मिलो इस बार फागुन में।।

कहीं सखियाॅं, कहीं कान्हा,
कहीं गोपी, कहीं ग्वाले।
कहीं मदमस्त से भौरें
करें मिल नृत्य मतवाले।

हथेली में छुपा कर भंग,
भर कर में बसंती रंग,
यही वो मगन हो कहती
मिलो इस बार फागुन में।।

कहीं इठला पड़ी निशिता,
कहीं वंशी लजाती है।
मधुर जो तान बजती,
राधिका को वो लुभाती है।

है यमुना धार जल की
कृष्ण के पाॅंवो से जा सिमटी।
वो बहती सी यही कहती
मिलो इस बार फागुन में।।

रश्मि लहर
लखनऊ उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
Tag: ग़ज़ल
42 Views
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