Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Aug 2023 · 6 min read

इलेक्शन ड्यूटी का हौव्वा

इलेक्शन ड्यूटी का हौव्वा

जिस प्रकार अस्पताल और अदालत एक आम आदमी कभी अपने शौक से नहीं बल्कि मजबूरी में ही जाता है, ठीक उसी प्रकार निर्वाचन ड्यूटी भी कोई अधिकारी या कर्मचारी शौक से नहीं, मजबूरी में ही करता है। यदि हम यह कहें कि बहुसंख्यक अधिकारी-कर्मचारी यही एक ऐसी ड्यूटी है, जिसे पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करते हैं। इसमें वे किसी भी प्रकार की कोताही नहीं बरतते हैं, क्योंकि उन्हें भलीभाँति पता होता है कि
जरा-सी भी लापरवाही बरतना उनके निलंबन या बर्खास्तगी का कारण बन सकता है। हालांकि बहुसंख्यक लोग निर्वाचन ड्यूटी से बचने के लिए नाना प्रकार के हथकंडे अपनाते हैं, पर विरले ही इससे बच पाते हैं। शेष बहुसंख्यक लोगों को झख मारकर ड्यूटी करनी ही पड़ती है।
महज छह महीने पहले ही सरकारी नौकरी ज्वाइन करने वाले रमेश को बीस दिन पहले ही जब निर्वाचन कार्यालय से पीठासीन अधिकारी के रूप में प्रथम प्रशिक्षण में उपस्थित होने का आदेश मिला, तब से मानो उसकी नींद ही उड़ गई थी। इसकी वजह भी थी, क्योंकि उसने अपने पूरे जीवन में कभी चुनाव ड्यूटी तो क्या, वोट तक नहीं डाला था। हायर सेकंडरी स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद, जब तक उसका नाम वोटर लिस्ट में जुड़ता, तब तक वह आगे की पढ़ाई के लिए अपने गाँव से हजारों किलोमीटर दूर उच्च शिक्षा के लिए चेन्नई जा चुका था, जहाँ से वह चाहकर भी वोट डालने के लिए अपने गाँव नहीं आ सकता था। कॉलेज की पढ़ाई पूरी होते ही कॉम्पीटिशन इक्जाम पास करने पर उसकी सरकारी नौकरी लग गई और अब चुनाव की ड्यूटी भी। दूसरी वजह, उसने अपने पुराने अनुभवी साथियों से चुनाव ड्यूटी के संबंध में बहुत-सी ऐसी-वैसी बातें सुन रखी थी, मानो चुनाव ड्यूटी में अधिकारी मतदान नहीं, दुश्मन देश में जाकर सर्जिकल स्ट्राइक करते हों। यही कारण है कि उसने अपने स्तर पर चुनावी ड्यूटी से मुक्ति पाने का तिकड़म भी भिड़ाया, पर सफल नहीं हुआ।
थक-हारकर वह बारी-बारी से तीन प्रशिक्षण प्राप्त कर ही लिया।
प्रशिक्षण से मानसिक रूप से चुनाव कार्य के प्रति उसका भय तो जाता रहा, हाँ, साथियों की बातें याद कर जरूर चिंतित हो जाता। खैर, निर्वाचन से एक दिन पहले वह अपने मतदान दल के साथ मतदान सामग्री उठाने पहुँच गया। सामग्री वितरण केंद्र के बाहर से हजारों की भीड़ देखकर उसे अपने सीनियर अधिकारियों की बातें सही लगने लगीं। जैसे-तैसे वह अपनी दुपहिया वाहन को निर्धारित पार्किंग में खड़ी कर अंदर आया, तो वितरण केंद्र के मैन गेट पर ही सभी मतदान दलों के लिए स्पष्ट निर्देश दिख गया कि किस पांडाल के किस काऊंटर पर उन्हें मतदान सामग्री मिलेगी।
उसने अपने दल के अन्य तीनों साथियों के साथ निर्धारित सेक्टर अधिकारी के पास जाकर अपनी उपस्थिति दी। सेक्टर अधिकारी जो कि 12 मतदान केंद्र के प्रभारी थे, ने तुरंत उन्हें मतदान सामग्री देकर निर्धारित बस में बैठने के लिए भेज दिया। बस में ही उन्हें उनके सुरक्षाकर्मी भी मिल गए, जो निर्वाचन समाप्ति के बाद सामग्री जमा होने तक उनके साथ रहने वाले थे।
अब तक उसे अपने पुराने साथियों की बात का भय लगभग दूर हो गया था, हाँ गाँव वाले, जहाँ उसे मतदान कराना था, वे कैसे होंगे, वह इसी उहापोह में रहा। जो होगा, अच्छा ही होगा, यही सोच कर उसने सब कुछ समय और ईश्वर पर छोड़ दिया।
अंततः दोपहर को वे उस गाँव में पहुंच ही गए, जहाँ उन्हें अगले दिन मतदान कराना था। सेक्टर अधिकारी उन्हें गाँव के उस मिडिल स्कूल के बाहर, जिसे मतदान केंद्र बनाया गया था, उतार कर आगे की ओर बढ़ गए।
रमेश ने सपने में भी नहीं सोचा था कि वहाँ उनका ऐसा स्वागत होगा। सात-आठ स्काउट-गाइड के बच्चे, उनके एक शिक्षक, मध्याह्न भोजन पकाने वाला रसोइया, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका उन लोगों का स्वागत करने के लिए उपस्थित थे। वे उन्हें ससम्मान स्कूल के अंदर ले गए, जहाँ दो कमरों को उनके लिए तखत और गद्दा बिछाकर विश्राम गृह बना दिया गया था और तीसरे कमरे को मतदान केंद्र।
शिक्षक और बच्चे उन्हें आग्रहपूर्वक फ्रेश होने के लिए बाथरूम की ओर ले गए। आँगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका ने हमारे मतदान दल की महिला साथी कर्मचारी को आश्वस्त किया कि मतदान की समाप्ति तक वे उनके साथ ही रहेंगी।
वे सभी जब तक फ्रेश होकर आते, रसोइया ने उनके लिए गरमागरम पकोड़े और चाय बना लिए। स्काउट गाइड के बच्चे बड़े ही प्यार से उन्हें परोसने लगे। रमेश को यह सब कुछ सपने जैसा ही लग रहा था।
वे अभी नास्ता करके हाथ-मुँह धो ही रहे थे, कि एक बड़ी सी गाड़ी आकर स्कूल के बाहर रूकी। गाँव के शिक्षक ने बताया कि वे इस गाँव के सरपंच जी हैं। रमेश को लगा, शायद ये कुछ दबाव डालेगा।
“नमस्कार साहेब। यहाँ आप लोगों को कोई असुविधा तो नहीं है न ?” सरपंच ने पूछा।
“नमस्कार जी। कोई असुविधा नहीं। बहुत ही अच्छे लोग हैं आपके गाँव के ये सभी। बच्चे भी बहुत प्यारे हैं।” रमेश ने बताया।
“जी, मैं माफी चाहूँगा पार्टी से जुड़े होने के कारण आप लोगों की सेवा में उपस्थित नहीं हो सकता, पर ये हमारे ये गुरुजी, मितानिन, सहायिका, रसोइया और बच्चे आपकी हर सुविधा का ध्यान रखेंगे, जिससे आपको अपनी ड्यूटी करने में कोई परेशानी नहीं होगी।” सरपंच जी ने कहा।
“सरपंच जी आप निश्चिंत रहिए। हम लोग हैं न। सब संभाल लेंगे।” आँगनवाड़ी कार्यकर्ता ने कहा।
“ठीक है फिर, चलता हूँ मैं। इजाजत दीजिए साहेब मुझे।” सरपंच जी ने हाथ जोड़े और निकल गए।
उनके जाने के बाद चारों प्रमुख दल के मतदान अभिकर्ता आए और अपना परिचय देते हुए अगले दिन मतदान के संबंध में चर्चा करने लगे। एक अधेड़ उम्र का अभिकर्ता, जो उम्र में उन चारों से बड़ा लग रहा था, बोला, “साहेब, आप अपनी पूरी तैयारी कर लीजिएगा। मॉकपोल निर्धारित ठीक सात बजे से ही शुरू कर दीजिएगा। हम चारों साढ़े छह बजे तक पहुँच ही जाएँगे। आठ बजे तक मतदान शुरू कर देंगे।”
“गुड। हम भी यही चाहते हैं। यहाँ साढ़े नौ सौ मतदाता हैं। आठ से पाँच अर्थात् नौ घंटे में पूरा मतदान कराना आसान काम नहीं है। हर घंटे औसतन सौ लोगों का मतदान।”
दूसरा एजेंट बोला, “सर आप निश्चिंत रहिए। कोई असुविधा नहीं होगी। आपको शायद पता नहीं होगा, हमारे गाँव में बहुत ही एकता है। यहाँ कभी पंचायत या मंडी का चुनाव नहीं होता, निर्विरोध निर्वाचन होता है। यहाँ लोकसभा और विधानसभा का ही चुनाव होता है। इसके लिए पंचायत में पहले की तरह ही मुनादी करा दी गई है कि सुबह 8 से 10 और शाम को 4 से 5 बजे के बीच महिलाएँ वोट डालने आएँगी। बाकी समय में पुरुष। वैसे स्त्री-पुरूष किसी भी समय अपनी सुविधानुसार आ सकती हैं, परंतु पंचायत में सबकी सुविधा के लिहाज से महिलाओं के लिए सुविधाजनक समय निकाला गया है। स्काउट-गाइड के बच्चे बुजुर्गों और महिलाओं की मदद के लिए उपलब्ध रहेंगे। साथ ही साथ वे घर-घर जाकर लोगों को मतदान केंद्र में आने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करेंगे, जिससे कोई भी ग्रामीण वोट डालने से रह न जाए।”
“व्हेरी गुड। ये तो बहुत ही अच्छी बात है।” रमेश के मुँह से निकल पड़ा।
तीसरा एजेंट बोला, “सर आप अपनी लिखा-पढ़ी दुरुस्त रखिएगा। बाकी हम सब लोग संभाल लेंगे। हम अपने पंचायत को एक आदर्श पंचायत के रूप में स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
“बिलकुल। हम पूरी तरह से तैयार हैं और आशा करते हैं कि आप सबके सहयोग से शत-प्रतिशत और शांतिपूर्ण मतदान भी कराएँगे।” रमेश ने कहा।
“जी सर। बेस्ट ऑफ लक। अब हम लोगों को इजाजत दीजिएगा। आप लोग आराम कीजिए। सुबह से निकले हुए हैं, बहुत थके होंगे। कल सुबह मिलते।” अधेड़ एजेंट बोला और वे चारों चले गए।
अगले दिन रमेश और मतदान दल के सभी अधिकारी-कर्मचारी सुबह साढ़े छह बजे तक नहा-धोकर तैयार हो गए थे। चारों प्रमुख दल के मतदान अभिकर्ता भी अपने-अपने अधिकृत पत्र के साथ उपस्थित हो गए थे। ठीक सात बजे से मॉकपोल और आठ बजे से मतदान प्रारंभ हो गया। पंचायत में लिए गए निर्णयानुसार गर्मी के महीने को देखते हुए सुबह और शाम के समय बहुसंख्यक महिला और दोपहर में पुरुषों ने मतदान किया। सबके सहयोग से पाँच बजे से कुछ समय पहले ही शत-प्रतिशत मतदाताओं ने अपना मतदान कर लिया था। हालांकि नियमानुसार मतदान पाँच बजे ही समाप्त घोषित किया गया। छह बजे तक सभी औपचारिकताएँ पूरी कर ली गईं। मतदान के बीच-बीच में बारी से सबने भोजन और जलपान भी कर लिया। कहीं कोई दिक्कत नहीं आई।
रात के आठ बजे तक उनकी बस उन्हें लेने को आ गई। रमेश और उनके साथियों को गाँव वाले ऐसे विदा कर रहे थे, मानो वे मेहमान हों। रमेश ने रसोइए को एक किनारे बुलाकर पाँच सौ रुपए देना चाहा, तो वह हाथ जोड़ कर मना कर दिया, “ये क्या साहेब। आप हमारे गाँव के मेहमान हैं और मेहमानों से भला कोई पैसे कैसे ले सकता है ?”
अब रमेश ने यह निश्चय कर लिया था कि वह किसी भी नये अधिकारी या कर्मचारी के सामने चुनावी ड्यूटी को हौव्वा के रूप में प्रस्तुत नहीं करेगा, बल्कि जो ऐसा करते हैं, उन्हें अपनी ये आपबीती जरूर सुनाएगा।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़

102 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
गांव और वसंत
गांव और वसंत
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
क्या बुरा है जिन्दगी में,चल तो रही हैं ।
क्या बुरा है जिन्दगी में,चल तो रही हैं ।
Ashwini sharma
इजहार करने के वो नए नए पैंतरे अपनाता है,
इजहार करने के वो नए नए पैंतरे अपनाता है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
जीवन मर्म
जीवन मर्म
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
"अकेडमी वाला इश्क़"
Lohit Tamta
प्रभु श्री राम आयेंगे
प्रभु श्री राम आयेंगे
Santosh kumar Miri
ग़ज़ल -संदीप ठाकुर- कमी रही बरसों
ग़ज़ल -संदीप ठाकुर- कमी रही बरसों
Sandeep Thakur
मैं सोच रही थी...!!
मैं सोच रही थी...!!
Rachana
3646.💐 *पूर्णिका* 💐
3646.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
जीवन पथ
जीवन पथ
Dr. Rajeev Jain
माँ का प्यार है अनमोल
माँ का प्यार है अनमोल
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
किसी की लाचारी पर,
किसी की लाचारी पर,
Dr. Man Mohan Krishna
आप या तुम
आप या तुम
DR ARUN KUMAR SHASTRI
यहां  ला  के हम भी , मिलाए गए हैं ,
यहां ला के हम भी , मिलाए गए हैं ,
Neelofar Khan
तू बेखबर इतना भी ना हो
तू बेखबर इतना भी ना हो
gurudeenverma198
अपनी सरहदें जानते है आसमां और जमीन...!
अपनी सरहदें जानते है आसमां और जमीन...!
Aarti sirsat
स्वयं से सवाल
स्वयं से सवाल
Rajesh
जागो बहन जगा दे देश 🙏
जागो बहन जगा दे देश 🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
आया सावन झूम के, झूमें तरुवर - पात।
आया सावन झूम के, झूमें तरुवर - पात।
डॉ.सीमा अग्रवाल
"ज्वाला
भरत कुमार सोलंकी
"परिवर्तन"
Dr. Kishan tandon kranti
यादों के संसार की,
यादों के संसार की,
sushil sarna
हमें पता है कि तुम बुलाओगे नहीं
हमें पता है कि तुम बुलाओगे नहीं
VINOD CHAUHAN
उम्मीद
उम्मीद
Dr fauzia Naseem shad
हम तुम्हारे हुए
हम तुम्हारे हुए
नेताम आर सी
ख्वाब हो गए हैं वो दिन
ख्वाब हो गए हैं वो दिन
shabina. Naaz
हिन्दी ग़ज़लः सवाल सार्थकता का? +रमेशराज
हिन्दी ग़ज़लः सवाल सार्थकता का? +रमेशराज
कवि रमेशराज
World Book Day
World Book Day
Tushar Jagawat
उलझनें तेरे मैरे रिस्ते की हैं,
उलझनें तेरे मैरे रिस्ते की हैं,
Jayvind Singh Ngariya Ji Datia MP 475661
अंधभक्तों से थोड़ा बहुत तो सहानुभूति रखिए!
अंधभक्तों से थोड़ा बहुत तो सहानुभूति रखिए!
शेखर सिंह
Loading...