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4 Apr 2020 · 1 min read

इन दिनों

इन दिनों,
रात, रात जैसी नहीं लगती,
न ही दिन चढ़ता है दिन की तरह
सूरज की सुर्ख लाल टिकिया
भी कहीं गुम हो जाती,
आपने प्रकाश छोड़ने से पहले
इन दिनों
आँखें भी दिखा रही अदाकारियाँ
सोने और जागने की,
आठ पहर ही लगा रहता रतजगा सा
इन दिनों
वे सलाह बांटते
“बाहर न निकले,
झांके अपने अंदर
करती हूँ कोशिश,
पर अंदर का अन्धकार
सहम सा जाता
कर देता हर दरवाजा बंद,
झांकता बाहर तरस
खाता हुआ
और कर देता निवस्त्र वजूद को,
इन दिनों
वे रामायण दिखाते
बांटते उपदेश गीता का,
देते सलाहें-ज्ञान
चेतावनियां और धमकियाँ
कि न सुनू कोई भी बात
अपने अंदरूनी महाभारत की
सोचती हूँ अब अक्सर
अगर मेरे मन मस्तिक्ष पर
तुझ अनंत का काबू न होता
तो इस एकांतवास
और रतजगों के श्राप ने
कर देना था पागल
मेरे वजूद को
इन रामायण-गीता की
सलाहों-ज्ञानो
चेतावनियों और धमकियों ने
कर देना था छलनी मेरी रूह को,
और अंदरूनी महाभारत ने
चढ़ा देना था , ख़ुदकुशी की सूली
मेरे जिस्म को
इन दिनों ……

Language: Hindi
Tag: कविता
4 Likes · 2 Comments · 204 Views

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