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23 Feb 2023 · 1 min read

इक क्षण

इक क्षण…….

दौड़ता सा इक क्षण
ठहरता कभी पल
सिमटे रूचिर तन
सहमे चंचल मन
मौन पुरानी दीवार
बंद खिड़की किवाड़
मजमा नित अनाम
ठहरी स्याह सी निश
लौ विहीन उजास
तड़पे मन भीतर
नयन लगाये आस
सुना सा अनाम पथ
ना उभरे पद्चाप
चलती रुकती साँस
बेचैनी तड़प प्यास
बन नीरव अधर
नवागत परिहास
फिर नई ये सुबह
अलहदा सा प्रभात।।

✍️”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक

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