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15 Apr 2020 · 1 min read

आवाज

इस मौन क्षुब्ध ह्रदय से इक आवाज़ निकलती
मन को झंझावत कर असीम वेदना गरजती
रह रहकर इक चिनगारी है सुलगती
क्यों विकल रुप धारण कर महामारी पांव पसारती

सब विस्मित हो रह जाते भ्रमित यहां
सूक्ष्म रुप विषाणु ने किया उपद्रव जहांन
मानवता पर बन संकट आया है
महाकाय रुप में मानों कोई दैत्य आया है

सब ओर हाहाकार स्वरों में मची है
संयम और एकता की दीवार खड़ी है
इस मकड़जाल से निकलना जल्द है
भारत की पहचान बनाना दृढ़ संकल्प है

कठिन विपत्ति में भी विश्वास जिसका अटल रहा
वहीं वीर है जो डटकर यहा खड़ा रहा
यह विषाणु है जिस पर संशय बना भारी है
भारत बन शक्ति उभरे आई जैविक युद्ध की बारी है

Language: Hindi
Tag: कविता
5 Likes · 1 Comment · 541 Views

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