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11 Apr 2024 · 2 min read

आया बसन्त आनन्द भरा

सारे प्राणी के मन को , मथने लगा अनंग ।
आया बसन्त आनन्द भरा , मन में बहुत तरंग ।।

पंच सर गहे निज हाथों में , शोषण-स्तंभन नाम ।
तापन – मोहन-उन्मादन है , करते मिलकर काम ।

मारे जिनको कामदेव है , पीड़ित होता अंग ।
आया बसन्त आनन्द भरा , मन में बहुत तरंग ।।

लेकर कर में पंच पुष्प का , जिनको मारें तीर ।
हो जाते तब अधीर प्राणी , योगी-मुनि- मतिधीर ।।

देवाधिदेव महादेव का , ध्यान हुआ था भंग ।
आया बसन्त आनन्द भरा , मन मेंं बहुत तरंग ।।

होते मनोज पंच पुष्पधर , नवमल्लिका-अशोक ।
आम्र-कमल-नीलोत्पल देते , मन में वियोग शोक ।।

जिनपर इनका प्रहार करते , चढ़ता उसपर रंग ।
आया बसन्त आनन्द भरा , मन में बहुत तरंग ।।

पंच सर सहित पंच पुष्प है , मारे यदि रतिनाथ ।
चाहत बाढ़े प्रीत मिलन की , उमंग – तरंग साथ ।।

प्रकृति तक मनोहारी लगती , बसन्त ऋतु के संग ।
आया बसन्त आनन्द भरा , मन में बहुत तरंग ।।

माथे शोभित बौर मुकुट-सा , वर बन खड़ा रसाल ।
ढाक सजा है दुल्हन जैसे , साड़ी – चुनरी लाल ।।

सोह वनस्पति पुष्पित सारी , प्रसून रंगविरंग ।
आया बसन्त आनन्द भरा , मन में बहुत तरंग ।

खेतों में पीत पुष्प सरसों , नीली अलसी भ्रात ।
गेहूँ की बाली लगती है , ज्यों रोमांचित गात ।।

नवयौवना धरा लगती है , सबके हृदय उमंग ।
आया बसन्त आनन्द भरा , मन में बहुत तरंग ।।

खग-मृग प्राणी आनन्दित हैं , ठण्ड – ताप में मेल ।
आह्लादित ‘ठाकुर’ सब होते , बसन्त ऋतु का खेल ।।

करते कमाल कामदेव हैं , प्राणी ढूँढ़ें संग ।
आया बसन्त आनन्द भरा , मन में बहुत तरंग ।।

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