आऩंद – अणु से मिलनातुर :: जितेंद्रकमल आनंद( पोस्ट१०१)
आनंद ,– अणु से मिलनातुर ( मुक्त छंद कविता )
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सखे !
जिस प्रकार —
बादल अपनापन बूँदों को
बूँदें अपनापन नदियों को
नदियाँ अपनापन सिंधु को
और —
सिंधु अपनापन इंदु को अर्पित करने के लिए आतुर रहता है ,
जिस प्रकार —
धरा सर्वस्य नीर को / नीर सर्वस्य अग्नि को
अग्नि सर्वस्य वायु को
और —
वायु सर्वस्य व्योम को
समर्पित करने के लिए आकुल रहता है ,
उसी प्रकार गीतकार स्वत्व गीतों को
गीत स्वत्व पदों को / पद स्वत्व शब्दों को
और —
शब्द स्वत्व पद्मो को ध्वनित करने के लिए व्याकुल रहता है / मिलनातुर रहता है आनंद — अणु से
और यह जीवित अणु भी तो / माइक्रोवायटम भी तो
मिलनातुर रहता है / कल्पांत में अव्यक्त से
निराकार से / निर्विकार से !
—— जितेंद्रकमलआनंद