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11 May 2023 · 1 min read

आधुनिक बचपन

गया किधर जाने कहाँ,खोया बचपन आज।
मोबाइल करने लगा, अब बच्चों पर राज।।

नहीं दौड़ना भागना,खेल-मेल आनंद।
डिजिटल बचपन हो गया, मोबाइल में बंद।।

लेपटाॅप पर हैं लगें,जगते पूरी रात।
सुबह हुई तो सो गये,है ऐसे हालात।।

हीन भावना से ग्रसित, भरा हुआ है क्रोध।
नित्य-नियम दायित्व का,इन्हें नहीं है बोध।।

नहीं रहा वो बचपना,खुशियों का संसार।
एक अलग दुनिया रचा,ये नूतन संचार।।

सुख सुविधाओं से भरा,नैसर्गिक से दूर।
अतृप्त दुखी उदास हैं,नहीं नींद भरपूर।।

हम सब का कर्तव्य है,हो शिशु मन का बोध।
कहाँ किधर गलती हुई, करना होगा शोध।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली

Language: Hindi
1 Like · 143 Views
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