आत्मा से विश्व है, यह विश्व भी मैं :: जितेंद्रकमलआनंद ( पोसंट९९)
घनाक्षरी
————–
आत्मा से विश्व है , यह विश्व भी मैं ही हूँ और —
विश्व निराकार यदि मैं भी निराकार हूँ ।
विश्व यदि निरंतर तो मैं भी तो निरन्तर ,
आत्मामय बनकर एकात्म विचार हूँ ।
बन गया अग्नि – पुंज मैं तो ज्ञान मिलते ही ,
स्वयं उद्धारक आप अपना निखार हूँ ।
मुझसे निसृत विश्व मुझमें ही होगा लय ,
ज्यों जल में लहर – सा तथ्य , ऐसा सार हूँ ।।
——- जितेन्द्र कमल आनंद