Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 May 2021 · 4 min read

आत्महीनता एक अभिशाप

किसी मनुष्य के सामान्य गुणों कि प्रशंसा कर उसे सम्मान देना तथा उसे और श्रेष्ठ कार्य करने के लिए प्रेरित करना हम सभी मनुष्यों के मनुष्यत्व के विशेष गुणों को दर्शाता है ।

इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति अपने से पद या उम्र में छोटे व्यक्ति से दुर्व्यवहार करता है उसकी छोटी-छोटी गलतियों के लिए उसे भला बुरा कहता है या दूसरों का अपमान करने के अवसरों की तलाश में रहता है तो वह व्यक्ति जाने अनजाने अपने ही ओछेपन का परिचय देता है ।

इस प्रकार का अमानवोचित व्यवहार दूसरे व्यक्ति के मन में आत्महीनता के रूप में सदा के लिए बैठ जाता है जिससे उबरने में कठिन परिश्रम और लंबा समय लगता है ।

मनुष्य के जीवन में सम्मान का बढ़ा महत्व है यदि व्यक्ति को उसके द्वारा किए गए किसी कार्य हेतु सम्मान मिलता है तो उस व्यक्ति का मनोबल आकाश की ऊंचाइयों को छूने लगता है तथा वह और सजगता से अपने कर्तव्यों के प्रति जागृत हो जाता है ।

वहीं यदि किसी व्यक्ति को हर बात में रोका टोका जाये बात-बात में उसकी गलती बताई जाये तो चाहे कितना भी बुद्धिमान व्यक्ति क्यों न हो उसे अपने अंदर हीनता का भाव अनुभव होने लगता है और जब यह भाव धीर-धीरे उसके व्यक्तित्व में घर बना लेता है तो वह व्यक्ति के सभी गुणों को दीमक की भांति चट कर जाता है । विद्यार्थियों के परिप्रेक्ष्य में भी यही बात आती है ।

‘आत्महीनता’ अर्थात अपनी योग्यता अपने ज्ञान के प्रति अविश्वास रखना और स्वयं को दूसरों की तुलना में गिरा हुआ मानना है यह एक ऐसा मानसिक रोग है जो विद्यार्थियों के जीवन की भावी संभावनाओं को ध्वस्त कर देता है । कहते हैं कि हाथी को अन्य प्राणी डील-डौल में उनके वास्तविक आकार-प्रकार से कहीं बड़े दिखाई देते हैं। उसकी आंख की बनावट ऐसी होती है कि वह अन्य प्राणियों का आकार कई गुना बढ़ा-चढ़ाकर देखती है, इसी कारण हाथी दूसरे प्राणियों से भयभीत रहता है और सामान्यतः एकाएक किसी पर आक्रमण नहीं करता ।

इसी प्रकार आत्महीनता के कारण विद्यार्थियों अपने अंदर छुपी हुई संभावनाओं को भूल कर परिस्थितियों को उस प्रकार नहीं देखता जिस प्रकार की वह होती हैं बल्कि अपनी छोटी से छोटी समस्या को भी विकराल समझता है और एक प्रकार के अज्ञात भय से आतंकित रहता है ।

इस प्रकार की मनोविकृति के कारण अधिकतर विद्यार्थियों मन ही मन स्वयं को तिरस्कृत करते रहते हैं और यह विकृति कब उनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति बन जाती है उन्हें पता भी नहीं चलता और वे सही व उचित बात भी नहीं कह पाते इस प्रकार की मनःस्थिति का सबसे ज्यादा प्रभाव उनकी शिक्षा पर पड़ता है उन्हें एक डर लगा रहता है कि पता नहीं मैं परीक्षा में पास हो पाऊँगा या नहीं और ये डर ही उनकी योग्यता को निगल जाता
है ।

विचारणीय है कि बच्चों में आत्महीनता की यह भावना कहाँ से क्यों उत्पन्न होती है? मनोविज्ञान इसके कई कारण बताता हैं। बच्चों को बचपन में आवश्यक स्नेह-सम्मान न मिल पाना, माता-पिता या अभिभावकों की ओर से उपेक्षा, उपहास का कारण बनते रहना या अभावग्रस्त स्थिति में समय गुजारते रहना आदि ऐसे कारण हैं जो बचपन से ही ऐसी मानसिक परिस्थितियां उत्पन्न करते हैं, जिनके कारण बच्चे बड़े होकर भी आत्महीनता की महाव्याधि के शिकार बनते हैं।

यहाँ तक ही नहीं कई बच्चे तो नशे की लत में पढ़कर अपना जीवन का नाश कर बैठते हैं ऐसे बच्चे जिन्हें माता-पिता का स्नेह नहीं मिला तथा जो अकेलेपन के शिकार हैं और बचपन से ही अपने आप को उपेक्षित महसूस करते हैं उनमें चिंताजनक रूप में आत्महीनता की भावना पाई जाती है और प्रायः यही लोग पथभ्रष्ट होते हैं।

अतः उससे छुटकारा पाना अत्यंत आवश्यक है। परिस्थितियों को बढ़ा-चढ़ाकर देखने की आदत और अपने आप को दूसरों के सामने छोटा, हेय, हीन समझने का स्वभाव आत्महीनता की भावना का प्रमुख लक्षण है। इस व्याधि को जड़-मूल से मिटाने हेतु आवश्यक है कि हम उचित और अनुचित की पहचान कर सकें और अपने मनोबल को इतना दृढ़ करें कि समय आने पर हम उचित को ही अपनाएँ और अनुचित का दृढ़ता से बहिष्कार और विरोध कर सकें सहमत होना और हां कहना अच्छी बात है, पर वह इतनी अच्छी बात नहीं है कि यदि कोई बात अनुचित लग रही है और अनुचित लगने के पर्याप्त कारण हैं, तो भी हां किया ही जाए और सहमत हुआ ही जाए। स्पष्ट रूप से, निःसंकोच भाव से अस्वीकार करने की हिम्मत भी रखनी चाहिए।

सोच-विचार करने में यह बात भी सम्मिलित रखनी चाहिए कि हर सही-गलत बात में हां-हां करते रहने से दूसरों की दृष्टि में अपने व्यक्तित्व का वजन घट जाता है और आत्मगौरव को ठेस पहुंचती है।

एक मानसिक रूप से परिपक्व व्यक्तित्व वही है जो अपने विचारों को स्पष्ट किंतु नम्र और संतुलित शब्दों में व्यक्त कर सके.
मनुष्य ईश्वर का पुत्र है और वेदों, पुराणोंमें ईश्वर को सर्वशक्तिमान और सर्वगुण सम्पन्न कहा गया है तो जब हमारे पिता परमात्मा हैं तो हम हीन कैसे हो सकते है हमारे अंदर भी अनेकानेक महत्वपूर्ण योग्यताएं विद्यमान है जैसे ही ये भाव हम अपने मन में लाते है हमारे क्षुद्र विचार तिरोहित होने लगते है कुंठाओं की गांठ खुलने लगती है ,आवश्यकता बस यह है कि हम इस चिंतन को निरंतर बनाए रखें ।
( सर्वाधिकार सुरक्षित)

पंकज कुमार शर्मा ‘प्रखर’
लेखक एवं विचारक
सुन्दर नगर,कोटा ,राज॰

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 822 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
वो इश्क को हंसी मे
वो इश्क को हंसी मे
पंकज पाण्डेय सावर्ण्य
हिन्दी दोहा बिषय- तारे
हिन्दी दोहा बिषय- तारे
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
भले हमें ना पड़े सुनाई
भले हमें ना पड़े सुनाई
Ranjana Verma
*रखता है हर बार कृष्ण मनमोहन मेरी लाज (भक्ति गीत)*
*रखता है हर बार कृष्ण मनमोहन मेरी लाज (भक्ति गीत)*
Ravi Prakash
दोहा
दोहा
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
हुनर में आ जाए तो जिंदगी बदल सकता है वो,
हुनर में आ जाए तो जिंदगी बदल सकता है वो,
कवि दीपक बवेजा
उज्ज्वल भविष्य हैं
उज्ज्वल भविष्य हैं
Taran Verma
अपनी जिंदगी मे कुछ इस कदर मदहोश है हम,
अपनी जिंदगी मे कुछ इस कदर मदहोश है हम,
Vaishnavi Gupta (Vaishu)
ना कोई संत, न भक्त, ना कोई ज्ञानी हूँ,
ना कोई संत, न भक्त, ना कोई ज्ञानी हूँ,
डी. के. निवातिया
अहं
अहं
Shyam Sundar Subramanian
जब कभी भी मुझे महसूस हुआ कि जाने अनजाने में मुझसे कोई गलती ह
जब कभी भी मुझे महसूस हुआ कि जाने अनजाने में मुझसे कोई गलती ह
ruby kumari
ना नींद है,ना चैन है,
ना नींद है,ना चैन है,
लक्ष्मी सिंह
कुछ तो अच्छा छोड़ कर जाओ आप
कुछ तो अच्छा छोड़ कर जाओ आप
Shyam Pandey
क्यों नहीं बदल सका मैं, यह शौक अपना
क्यों नहीं बदल सका मैं, यह शौक अपना
gurudeenverma198
"कुछ जगह ऐसी होती हैं
*Author प्रणय प्रभात*
201…. देवी स्तुति (पंचचामर छंद)
201…. देवी स्तुति (पंचचामर छंद)
Rambali Mishra
मुख्तसर हयात है बाकी
मुख्तसर हयात है बाकी
shabina. Naaz
दुनियां और जंग
दुनियां और जंग
सत्य कुमार प्रेमी
मन की भाषा
मन की भाषा
Satish Srijan
माँ
माँ
shambhavi Mishra
साँप ...अब माफिक -ए -गिरगिट  हो गया है
साँप ...अब माफिक -ए -गिरगिट हो गया है
सिद्धार्थ गोरखपुरी
आलिंगन शहद से भी अधिक मधुर और चुंबन चाय से भी ज्यादा मीठा हो
आलिंगन शहद से भी अधिक मधुर और चुंबन चाय से भी ज्यादा मीठा हो
Aman Kumar Holy
आँखे मूंदकर
आँखे मूंदकर
'अशांत' शेखर
मैं जानती हूँ तिरा दर खुला है मेरे लिए ।
मैं जानती हूँ तिरा दर खुला है मेरे लिए ।
Neelam Sharma
जरा सी गलतफहमी पर
जरा सी गलतफहमी पर
Vishal babu (vishu)
एक और चौरासी
एक और चौरासी
Shekhar Chandra Mitra
महंगाई का दंश
महंगाई का दंश
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
मासूम पल
मासूम पल
Dr. Rajiv
Happy Holi
Happy Holi
अनिल अहिरवार"अबीर"
💐प्रेम कौतुक-278💐
💐प्रेम कौतुक-278💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
Loading...