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4 Feb 2022 · 1 min read

आज वह पहुँचा मंजिल के पास

वह युवा पहले से बेरोजगारी का दंश झेल रहा था
बढ़ती मंहगाई का बोझ उठा रहा था
डिग्री – डिप्लोमा का माला पहन कर
प्रतिदिन एक आस लिए सड़कों पर घूम रहा था।

सड़को के मानवजन उसके माला को देख हँस रहे थे
वह एक आफिस से दूसरे आफिस प्रतिदिन जा रहा था
अपनी दुखड़ा आफिस वालों को सुना रहा था।

बेरहम आफिस वालों के दिल न पसीजे
आफिस वाले कहते नेताओं के सिफारिश लाओ
या फिर मोटी रकम दे जाओ
फिर अपने कार्य (रोजगार) को पाओ।

वह युवा आज फिर हुआ निराश
लौट आया फिर घर को आज
उसनें फिर भी हिम्मत नहीं हारी
एक निजी संस्थान ने उसे रोजगार दे डाली।

अब वह खुश हो रहा
अपना काम ईमानदारी से कर रहा
न जाने प्रभू को क्या मंजूर था
बेरहम कोरोना ने रोजगार फिर छिन लिया
फिर भी उसने न हिम्मत हारा उसको था वही आस
फिर वह निकल गया रोजगार की ओर तलाश।

अपने मन में लिए विश्वास
आज फिर से वह पहुँच गया उस ओर
पहुँचा वह आज मंजिल के पास।।।

राकेश कुमार राठौर
चाम्पा (छत्तीसगढ़)

Language: Hindi
Tag: कविता
106 Views
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