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24 Jul 2016 · 1 min read

आज कुछ ऐसी कलमकारी हुई

आज कुछ ऐसी कलमकारी हुई
ये ग़ज़ल तो प्यार से प्यारी हुई

मुज़रिमों में कर लिया शामिल हमें
भूल हमसे तो न कुछ भारी हुई

फिर फ़लक पर छा गई हैं बदलियां
रिमझिमी बरसात की बारी हुई

ज़ख़्म सीने का दिखा पाये नहीं
बात यूँ तुमसे बहुत सारी हुई

फूँक कर पीने लगे हम छाछ भी
दूध से जलने की’ बीमारी हुई

जल उठे दिल के हजारों दाग कल
दुश्मन-ए-जां एक चिंगारी हुई

राकेश दुबे “गुलशन”
23/07/2016
बरेली

Language: Hindi
1 Comment · 422 Views
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