आंधियां अपने उफान पर है

आंधियां अपने उफान पर है
जिंदगी संघर्ष में चल रही है ,
दिया यहाँ अलग जल रहा है
और हवा अलग चल रही है !
मन के अंदर अलग समा है
अंदर ख्वाहिशें मचल रही है,
जिंदगी की सुई रूकती कहां
यह धीरे-धीरे फिसल रही है !
कवि दीपक सरल
आंधियां अपने उफान पर है
जिंदगी संघर्ष में चल रही है ,
दिया यहाँ अलग जल रहा है
और हवा अलग चल रही है !
मन के अंदर अलग समा है
अंदर ख्वाहिशें मचल रही है,
जिंदगी की सुई रूकती कहां
यह धीरे-धीरे फिसल रही है !
कवि दीपक सरल