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29 Oct 2022 · 1 min read

आंखों के दपर्ण में

आंखों के दपर्ण में
आंख डालकर तो देखो
मेरे मन की गहराई को
सागर से भी ज्यादा है जो
गहरा है मन
भावनाये तरंगे उठती है
फिर उठकर गिरती है
नाटक के पर्दे के समान
तुम में मुझमें पर्दा हो जाता है
लज्जा से पल्लू को गांठ लगाते हुए
लज्जा से लजाते हए
आंखों के दपर्ण में
आंख डालकर तो देखो
मेरे मन की गहराई को
सागर से भी ज्यादा है जो
समाज की मर्यादा ऐसी है
जिसमें बंधन बहुत से है
उन बंधनों में बाधंकर तो देखो।

नाम-मनमोहन लाल गुप्ता
मोहल्ला-जाब्तागंज, नजीबाबाद, बिजनौर, यूपी
मोबाइल नंबर 9152859828

Language: Hindi
Tag: कविता
1 Like · 131 Views
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