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6 Aug 2016 · 1 min read

अक़ीदत झूठ की करता नहीं मैं

अक़ीदत झूठ की करता नहीं मैं
बदी के रास्ते चलता नहीं मैं

मुझे आता है लड़ना मुश्किलों से
किसी भी हाल में डरता नहीं मैं

रखा करता हूँ रिश्तों में खरापन
ज़माने को तभी जँचता नहीं मैं

कमी समझो मेरी या कि हुनर तुम
यकीं देकर कभी छलता नहीं मैं

हज़ारों दर्द लेकर जी रहा हूँ
किसी से भी मगर कहता नहीं मैं

मैं भीतर और बाहर एक सा हूँ
मुखौटा ओढ़कर रहता नहीं मैं

भले ही आजमा लो मुझको ‘माही’
वफ़ा की राह पर थकता नहीं मैं

माही
जयपुर, राजस्थान

1 Comment · 550 Views
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