*अर्ध समाजवादीकरण : एक नमूना (हास्य व्यंग्य)*

*अर्ध समाजवादीकरण : एक नमूना (हास्य व्यंग्य)*
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मान लीजिए ,किसी शहर में समाजवाद आ जाता है मगर पूरी तरह नहीं आता । तब वहां पर अधिकारी दुकानदार से कहेगा कि अब तुम्हारी दुकान का समाजवादीकरण हो रहा है इसलिए दुकान पर जितना सामान रखा हुआ है वह आज से सरकार का है । इसको बेचने पर जो नफा मिलेगा ,वह भी सरकार का है । दुकान के सारे कर्मचारी सरकार के कहलाएंगे।
दुकानदार प्रश्न करता है :-” हजूर तो फिर मैं दुकान से उठकर चला जाऊं ? किसी और काम धंधे में लगूँ ?”
अधिकारी कहता है :- “नहीं ! अधकचरे समाजवाद के कारण तुम यहीं पर बैठोगे। सारा हिसाब-किताब तुम्हें ही रखना है। कितना माल आया , कितना बिका और कितना मुनाफा या नुकसान हुआ ,इसको रजिस्टर में मेंटेन करना पड़ेगा । सारा कार्य तुम्हारे ही द्वारा होगा क्योंकि अभी भी दुकान के मालिक तुम ही हो ।”
दुकानदार बेचारा बड़बड़ाता है । कहता है :- “जब हमारा कोई नियंत्रण ही नहीं है तो हम काहे के मालिक ? ”
अधिकारी समझाता है :-“अभी पूरी तरह समाजवाद नहीं आया है । हम प्रोसेस में हैं। तब तक मालिक तुम ही कहलाओगे।”
दुकानदार परेशान हो जाता है । कहता है :-“हमें मालिक नहीं बनना है । बिना बात का यह संबोधन हमें ठीक नहीं लगता।”
अधिकारी अब समाजवादी शक्ल अपना लेता है और डांट कर कहता है :-“चुप रहो ! तुम मालिक हो । सारे काम तुम्हारे ही द्वारा होंगे ।”
दुकानदार बेचारा सहम कर मालिक की गद्दी पर बैठ जाता है । अधिकारी उसे एक रजिस्टर देता है और कहता है :-“सारा हिसाब-किताब तुम्हें भरना पड़ेगा। ”
बेचारा दुकानदार मरता क्या न करता की स्थिति में आकर सुबह से शाम तक रजिस्टर भरने लगता है ।
अब अधकचरे समाजवाद की पराकाष्ठा देखिए ! अधिकारी अपने दफ्तर में बैठकर आदेश देता है :- “नए साल से नए रजिस्टर में सारा कुछ कामकाज का हिसाब भरना शुरू करो । मैं तुमको नया रजिस्टर भेज रहा हूं । ”
दुकानदार बेचारा तथाकथित मालिक की गद्दी पर बैठा हुआ रजिस्टर का इंतजार करने लगता है । अधिकारी एक सप्ताह बाद दुकानदार को फोन करता है :- “हेलो ! मैं अधिकारी बोल रहा हूं । क्या बात ,अभी तक रजिस्टर मैं एंट्री शुरू नहीं की ?”
” हजूर ! आपने लिखा था कि रजिस्टर आप भेजेंगे । उसके बाद मैं एंट्री करूंगा ।”
“हमें गलत बता रहे हो ,जबकि जानते हो कि अधकचरा समाजवाद आ चुका है । तुम केवल तथाकथित मालिक हो ।”
“जी हजूर ! हमें मालूम है कि मालिक आप हैं ।”
“तो फिर हम तुम्हारी दुकान पर रजिस्टर देने आएँगे या तुम हमारे दफ्तर में रजिस्टर लेने आओगे ?”
“हजूर ! वेतन तो आपको मिल रहा है । हम तो दुकान पर बैठकर सिर्फ बेगार के मजदूर हैं ।”
“ज्यादा बातें मत बनाओ वरना अधिनियम की धारा ढूंढ कर तुम्हारे खिलाफ कार्यवाही शुरू कर देंगे और तुम्हें दुकान पर बैठने के लिए जो कुर्सी मिली हुई है ,वह भी छिन जाएगी । उल्टे जेल अलग जाओगे।”
दुकानदार चाहता है कि अधिकारी की शिकायत ऊपर की जाए मगर फिर उसे समाजवाद के अधकचरे होने का स्मरण हो आता है और वह खून का घूंट पीकर रह जाता है।
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा , रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451