Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Dec 2022 · 3 min read

*अर्ध समाजवादीकरण : एक नमूना (हास्य व्यंग्य)*

*अर्ध समाजवादीकरण : एक नमूना (हास्य व्यंग्य)*
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
मान लीजिए ,किसी शहर में समाजवाद आ जाता है मगर पूरी तरह नहीं आता । तब वहां पर अधिकारी दुकानदार से कहेगा कि अब तुम्हारी दुकान का समाजवादीकरण हो रहा है इसलिए दुकान पर जितना सामान रखा हुआ है वह आज से सरकार का है । इसको बेचने पर जो नफा मिलेगा ,वह भी सरकार का है । दुकान के सारे कर्मचारी सरकार के कहलाएंगे।
दुकानदार प्रश्न करता है :-” हजूर तो फिर मैं दुकान से उठकर चला जाऊं ? किसी और काम धंधे में लगूँ ?”
अधिकारी कहता है :- “नहीं ! अधकचरे समाजवाद के कारण तुम यहीं पर बैठोगे। सारा हिसाब-किताब तुम्हें ही रखना है। कितना माल आया , कितना बिका और कितना मुनाफा या नुकसान हुआ ,इसको रजिस्टर में मेंटेन करना पड़ेगा । सारा कार्य तुम्हारे ही द्वारा होगा क्योंकि अभी भी दुकान के मालिक तुम ही हो ।”
दुकानदार बेचारा बड़बड़ाता है । कहता है :- “जब हमारा कोई नियंत्रण ही नहीं है तो हम काहे के मालिक ? ”
अधिकारी समझाता है :-“अभी पूरी तरह समाजवाद नहीं आया है । हम प्रोसेस में हैं। तब तक मालिक तुम ही कहलाओगे।”
दुकानदार परेशान हो जाता है । कहता है :-“हमें मालिक नहीं बनना है । बिना बात का यह संबोधन हमें ठीक नहीं लगता।”
अधिकारी अब समाजवादी शक्ल अपना लेता है और डांट कर कहता है :-“चुप रहो ! तुम मालिक हो । सारे काम तुम्हारे ही द्वारा होंगे ।”
दुकानदार बेचारा सहम कर मालिक की गद्दी पर बैठ जाता है । अधिकारी उसे एक रजिस्टर देता है और कहता है :-“सारा हिसाब-किताब तुम्हें भरना पड़ेगा। ”
बेचारा दुकानदार मरता क्या न करता की स्थिति में आकर सुबह से शाम तक रजिस्टर भरने लगता है ।
अब अधकचरे समाजवाद की पराकाष्ठा देखिए ! अधिकारी अपने दफ्तर में बैठकर आदेश देता है :- “नए साल से नए रजिस्टर में सारा कुछ कामकाज का हिसाब भरना शुरू करो । मैं तुमको नया रजिस्टर भेज रहा हूं । ”
दुकानदार बेचारा तथाकथित मालिक की गद्दी पर बैठा हुआ रजिस्टर का इंतजार करने लगता है । अधिकारी एक सप्ताह बाद दुकानदार को फोन करता है :- “हेलो ! मैं अधिकारी बोल रहा हूं । क्या बात ,अभी तक रजिस्टर मैं एंट्री शुरू नहीं की ?”
” हजूर ! आपने लिखा था कि रजिस्टर आप भेजेंगे । उसके बाद मैं एंट्री करूंगा ।”
“हमें गलत बता रहे हो ,जबकि जानते हो कि अधकचरा समाजवाद आ चुका है । तुम केवल तथाकथित मालिक हो ।”
“जी हजूर ! हमें मालूम है कि मालिक आप हैं ।”
“तो फिर हम तुम्हारी दुकान पर रजिस्टर देने आएँगे या तुम हमारे दफ्तर में रजिस्टर लेने आओगे ?”
“हजूर ! वेतन तो आपको मिल रहा है । हम तो दुकान पर बैठकर सिर्फ बेगार के मजदूर हैं ।”
“ज्यादा बातें मत बनाओ वरना अधिनियम की धारा ढूंढ कर तुम्हारे खिलाफ कार्यवाही शुरू कर देंगे और तुम्हें दुकान पर बैठने के लिए जो कुर्सी मिली हुई है ,वह भी छिन जाएगी । उल्टे जेल अलग जाओगे।”
दुकानदार चाहता है कि अधिकारी की शिकायत ऊपर की जाए मगर फिर उसे समाजवाद के अधकचरे होने का स्मरण हो आता है और वह खून का घूंट पीकर रह जाता है।
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा , रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

39 Views
Join our official announcements group on Whatsapp & get all the major updates from Sahityapedia directly on Whatsapp.

Books from Ravi Prakash

You may also like:
"मानो या न मानो"
Dr. Kishan tandon kranti
जबसे तुमसे लौ लगी, आए जगत न रास।
जबसे तुमसे लौ लगी, आए जगत न रास।
डॉ.सीमा अग्रवाल
तनिक लगे न दिमाग़ पर,
तनिक लगे न दिमाग़ पर,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
मेहनत
मेहनत
Anoop Kumar Mayank
नवगीत
नवगीत
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
💐प्रेम कौतुक-291💐
💐प्रेम कौतुक-291💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
हमे यार देशी पिला दो किसी दिन।
हमे यार देशी पिला दो किसी दिन।
विजय कुमार नामदेव
■ लघुकथा....
■ लघुकथा....
*Author प्रणय प्रभात*
आंधियों से हम बुझे तो क्या दिए रोशन करेंगे
आंधियों से हम बुझे तो क्या दिए रोशन करेंगे
कवि दीपक बवेजा
मोहब्बत का ज़माना आ गया है
मोहब्बत का ज़माना आ गया है
Surinder blackpen
कभी चुपचाप  धीरे से हमारे दर पे आ जाना
कभी चुपचाप धीरे से हमारे दर पे आ जाना
Ranjana Verma
2320.पूर्णिका
2320.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
मेरी मोहब्बत, श्रद्धा वालकर
मेरी मोहब्बत, श्रद्धा वालकर
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
पर्यावरण-संरक्षण
पर्यावरण-संरक्षण
Kanchan Khanna
उलझनें हैं तभी तो तंग, विवश और नीची  हैं उड़ाने,
उलझनें हैं तभी तो तंग, विवश और नीची हैं उड़ाने,
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
सामाजिक न्याय के प्रश्न
सामाजिक न्याय के प्रश्न
Shekhar Chandra Mitra
बह रही थी जो हवा
बह रही थी जो हवा
Dr. Rajendra Singh 'Rahi'
रात है यह काली
रात है यह काली
जगदीश लववंशी
सहकारी युग ,हिंदी साप्ताहिक का 15 वाँ वर्ष { 1973 - 74 }*
सहकारी युग ,हिंदी साप्ताहिक का 15 वाँ वर्ष { 1973 - 74 }*
Ravi Prakash
दोहे शहीदों के लिए
दोहे शहीदों के लिए
दुष्यन्त 'बाबा'
सहजता
सहजता
Sanjay
कट कर जो क्षितिज की हो चुकी, उसे मांझे से बाँध क्या उड़ा सकेंगे?
कट कर जो क्षितिज की हो चुकी, उसे मांझे से बाँध क्या उड़ा सकेंगे?
Manisha Manjari
आज समझी है ज़िंदगी हमने
आज समझी है ज़िंदगी हमने
Dr fauzia Naseem shad
You are not born
You are not born
Vandana maurya
बाल कविता: मोटर कार
बाल कविता: मोटर कार
Rajesh Kumar Arjun
मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
Anand Kumar
कुर्सी के दावेदार
कुर्सी के दावेदार
Shyam Sundar Subramanian
गज़ल
गज़ल
करन मीना ''केसरा''
बरसो रे मेघ (कजरी गीत)
बरसो रे मेघ (कजरी गीत)
Vishnu Prasad 'panchotiya'
"डॉ० रामबली मिश्र 'हरिहरपुरी' का
Rambali Mishra
Loading...