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17 Apr 2022 · 1 min read

अर्थी चली कंगाल की

अर्थी चली कंगाल की
हाय ! रे बेहाल की

चार जन उठाए हुए थे,
मंदी मंदी चाल थी।
नैनो से आंसू टपक रहे थे,
आंखें हो गई लाल थी ।।
अर्थी चली कंगाल की…..

दोस्त उनके जो कभी बिछड़ गए थे,
मजार पर आज उनकी भीड़ थी ।
मौन -विलाप सब कर रहे थे ,
घर रो रही बेचारी बीर थी।।
अर्थी चली कंगाल…..

हरी चूड़ियों से कभी हाथ सजाए थे,
आज मृत की छाती पर पड़ी थी।
जबरदस्ती तोड़ दी थी ,
मानो टुटी जंजीर थी ।।
अर्थी चली कंगाल की …….

लिटाया गया मृत को मजार पर ,
उपस्थित जनों ने दिल थाम कर।
दी मुखाग्नि मृतक के बड़े बेटे ने ,
कहर ढाह रही ये शाम थी।।
अर्थी चली कंगाल की ……..

भाई ने बाँश फैका मजार पर से,
खूब दहाड़ मार कर के ।
गलती हो तो माफ कर देना ,
छोड़ चले हमें निस्सहाय कर के।।
अर्थी चली कंगाल की …..

दिखावा करने वह लोग भी आऐ थे,
जिसने बीमारी पर पैसे लगाऐ थे।
दिखावा कर सब रो रहे थे ,
पर चिंता थी ब्याज की ।।
अर्थी चली कंगाल की ……

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 135 Views
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