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21 Oct 2022 · 1 min read

कैसा अलबेला इंसान हूँ मैं!

माना घर का था मैं निगोड़ा
वो माना बीबी से मुहँ मोड़ा
बेच चाय सी सपने सबको
मत पूछो कहाँ किसे मरोड़ा

उन्नीस से न यूँ ही बीस बड़ा
अब भारत का प्रधान हूँ मैं
कैसा अलबेला इंसान हूँ मैं

माना माँ ने कुछ जतन किये
माना हमने भी कई वेष धरे
पर हर ताले कि चाभी नहीं
इस बिधना ने मेरे भाग्य करे

ले देख बापू के नाम से ही
अब कितना परेशान हूँ मैं
कैसा अलबेला इंसान हूँ मैं

मेरे चच्चा भाई बाप निगोड़ा
देख कहाँ पे किसको फोड़ा
आज हुआ संरक्षक उसका
जो तोड़े नही जाएगा तोड़ा

पर यदुवंशी मैं रामभक्तों के
द्रोही का ही तो संतान हूँ मैं
कैसा अलबेला इंसान हूँ मैं

मैंने धूप में थी चादर फैलाई
कि रहे प्रेम से हर भाई भाई
पर जात पात के चक्कर में
यह कटुताओं कि घटा छाई

अब रोज नामचे के पर्चे पर
ये देता प्रभु को संज्ञान हूँ मैं
कैसा अलबेला इंसान हूँ मैं

©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २१/१०/२०२१)

1 Like · 88 Views
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