Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Dec 2022 · 16 min read

अराच पत्रक

-आराच पन्नक-

कहानी अतीत कि घटित सत्य घटनाएं जो वर्तमान एव भविष्य के लिए दिशा दृष्टिकोण का मार्ग प्रदान करते हुए शिक्षा एव संवेदनाओ के लिए प्रेरणा परक होते है ।

रामायण मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जीवन ऐश्वर्य का सत्यार्थ ब्रह्मर्षि वाल्मीकि जी के द्वारा प्रस्तुत करते हुए युगों युगों के लिए जीवन एव उसके मौलीक मुल्यों को मर्यदा पुरुषोत्तम के आदर्शों परिपेक्ष में प्रेरित करता है जिसे बाद में गोस्वामी तुलसी दास ने भव्यता प्रदान किया।

महाभारत के परिपेक्ष्य में भी यही सत्य है वेदव्यास जी महाभारत काल के प्रत्यक्षदर्शी थे जिनके द्वारा चंद्रवंशियों के जीवन बैभव पराक्रम एवं राजनीति कला आदि का वर्णन महाभारत पुराण के माध्यम से प्रस्तुत किया है जैसे कि ब्रह्मर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण के माध्यम से किया है दोनों ने अपने समकालीन घटनाओं को श्लोकों के माध्यम से प्रस्तुत कर अपने वर्तमान से भावी पीढ़ियों युगों को जीवन कि व्यवहारिकता नैतिक आचरण संस्कृति सांस्कार के लिए संदेश एव मार्ग दर्शन दिया है जो तत्कालीन घटनाएं थी आज इतिहास एव कहानियों के रूप में प्रेरित करती मानव समाज को दिशा दृष्टिकोण प्रदान करती है।

रामायण एव महाभारत को धर्म ग्रंथो का दर्जा प्राप्त है इसी प्रकार पंचतंत्र एव अरीबन नाईट काल्पनिकता एव वास्तविकता के समन्वय के रूप में प्रस्तुत है जो प्रासंगिक बन वर्तमान एव युगों युगों कि पीढ़ियों का मार्ग दर्शन करती रहेंगी।

प्रस्तुत कहानी आराच पन्नक जिसका स्पष्ट मतलब होता है विषधर बाण जो समय के साथ नीमा के जीवन बक्ष में प्रहार करता पूरे जीवन कि खुशियों को उलट कर रख देता है और देता है विपत्तियों का पहाड़ भय भयानक जीवन एवं अग्निपथ जिसमें अपनी अग्नि परीक्षा जीवन भर नीमा देती रहती है साथ ही साथ उसकी दो मासूम बेटियों को भी मां के जीवन के अग्नि पथ की तपिश में झुलसना एवं शीतलता कि तलाश का संघर्ष करना होता है ।

कहानी में दो अलग अलग पीढ़ियों कि बेटी नारी के संघर्षों उसके शांत स्वर में हुक वेदना एवं सामाजिक प्रहार कि मार से आहत मर्माहत मूक सिसकियों की वास्तविकता कहता वर्तमान कि बेटियों नारी समाज को प्यापक दिशा दृष्टि कोण प्रदान करता प्रासंगिक सत्यार्थ यथार्थ वर्तमान को प्रेरणा देती है अाराच पन्नक।

कहानी सत्य घटना का साक्ष है जो वर्तमान के शासन समाज को जीवन संघर्षो षड्यंत्रों का आराच पन्नक की तरह उसके परिणाम को प्रस्तुत कर सोचने को विवश करती है ।

कहानी एक ऐसी माँ की है जिसका जन्म सभी भौतिक सुख सुविधाओं के बीच होता है और जीवन संघर्षो एवं संवेदनाओं कि वेदना से नित्य आहत होता रहता है ।

यह कहानी दो बेटियों कि है जिन्होंने अपने पिता को खोया और बचपन से ही समाज के उस विकृत स्वरूप को देखा जिया जो हर पल उनके स्वाभिमान को आहत करता रहा फिर भी हिम्मत नही हारी और माँ बेटियों ने अपने संघर्षो से समय समाज के लिए आदर्श प्रेरणा प्रस्तुत करते हुए जीवन पथ कि कठिनाईयों चुनौतियों से लड़ने एव जितने के लिए प्रेरित किया है इसी सत्य का साकार करती कहानी हैं आराच पन्नक।

राम रतन सिंह नेपाल से सटे भारत नेपाल सीमा के गांव गेरमा के बहुत प्रतिष्ठित जमींदार थे ईश्वर की कृपा से उनके पास कोई कमी नही थी दो पुत्र रिपुदमन सिंह एव चंद्रमौलि सिंह राम रतन सिंह एवअच्युता के प्रिय संतानों में थे दोनों होनहार एव भारतीय परम्पराओं के अनुरूप थे ।

अच्युता एव राम रतन सिंह को एक बेटी की कमी बहुत अखरती अच्युता के बहुत कहने पर राम रतन सिंह ने कुल पुरोहित पण्डित श्यामा चरण शास्त्री को बुलाया और पत्नी अच्युता की पुत्री कि इच्छा बताई पण्डित श्यामाचरण ने राम रतन सिंह को बताया कि उन्हें एक कन्या का योग बनता है लेकिन इसके लिए अच्युता को माँ दुर्गा की नियमित उपासना एक वर्ष तक करनी होगी जिसके लिए उन्होंने विधि विधान बताया और चले गए।

अच्युता ने पण्डित जी के बताए विधि विधान से माँ दुर्गा की आराधना शुरू किया एक वर्ष बाद उन्होंने राम रतन सिंह को घर मे नए मेहमान के आने की सूचना दी ।

नौ महीने बाद अच्युता ने एक सुंदर कन्या रत्न को जन्म दिया राम रतन सिंह कि वर्षो कि मुराद पूरी हुई राम रतन सिंह के परिवार में खुशियों का कोई ठिकाना नही रहा।

कन्या की आने की खुशी में सर्वत्र ख़ुशनुमा वातावरण था भाई रिपुदमन एव चंद्र मौली नन्ही परी सी छोटी बहन को बहुत प्यार करते बड़े नाज़ से माँ अच्युता ने पण्डित श्याम चरण शात्री को बुलाकर घर कि नन्ही परी का नामाकरण सांस्कार सम्पन्न कराया गया और नाम रखा गया नीमा ।

बेटी लक्ष्मी प्यारी न्यारी
दुलारी खुशियों की किलकारी
बेटी ।
चाहत और प्रतीक्षा मां दुर्गा
साक्षात हैं बेटी अभिलाषा आकांक्षा अवनी आकाश हैं
बेटी ।
नीमा रतन अच्युता की जीवन
प्राण जीवन स्वांस भाग्य भगवान हैं बेटी।।

नीमा बेहद खूबसूरत थी विल्कुल ठाकुर राम रतन सिंह एव अच्युता कि कल्पनाओं के अनुरूप जैसे साक्षात परी उतर आई हो।

नीमा का जन्म भारत की स्वतंत्रता के चौदह पंद्रह वर्ष बाद ही हुआ था देश आजादी के बाद अपने पुनर्निर्माण एव विकास में व्यस्त था उस दौर में लड़कियों कि शिक्षा के प्रति जागरूकता नही थी फिर भी राम रतन सिंह ने बेटी नीमा को बेटो की तरह ही शिक्षा दीक्षा देने का निर्णय ही नही किया बल्कि सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई जिससे कि बेटी नीमा की शिक्षा निर्वाध जारी रह सके ।

बेटी नीमा ने भी माँ बाप के अरमानों को पंख लगा दिएऔर बहुत परिश्रम करती अध्ययन में जी जान से जुट गई अपने कक्षा में सदैव अव्वल आकर अपने माँ बाप का नाम रौशन करती रही हाई स्कूल ,इंटरमीडिएट फिर स्नातक स्नातकोत्तर कि शिक्षा पूर्ण कर चुकी नीमा ।

रतन सिंह को एव माँ अच्युता को नीमा के विवाह की चिंता सताने लगी लेकिन नीमा कोई साधारण लड़की नही थी ईश्वर ने उसे जन्म ही दिया था बेटी नारी की अलग मर्यदा पहचान समय समाज मे स्थापित करने के लिये उसने अपने माँ बाप से प्रतियोगी परीक्षाओं कि तैयारी के लिए समय मांगा उस समय इलाहाबाद बहुत बड़ा केंद्र हुआ करता था आई ए एस ,पी सी एस कि प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए ।

नीमा ने इलाहाबाद जाकर प्रतियोगी परीक्षाओं कि तैयारी शुरू कर दिया यह वह दौर था जब बालिकाओं कि शिक्षा दर बहुत न्यूनतम थी नौकरी की बात तो बहुत असंभव सी बात थी फिर भी नीमा ने बहुत मेहनत किया और उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के माध्यम से उसका चयन जिला कोषागार अधिकारी के रूप में हुआ और पूरे क्षेत्र में नीमा कि सफलता के डंके बजने लगे वर्ष वर्ष उन्नीस सौ उन्यासी अस्सी का दौर था ।

अब राम रतन सिंह और माँ अच्युता को नीमा के विवाह की चिंता सताने लगी तब नीमा के योग्य वर मिलना भी बहुत कठिन चुनौती थी ।

नीमा संस्कारो में पली समाज के लिए अनुकरणीय लड़की थी अतः वह अपने विवाह के विषय मे सारे नीर्णय अपने माँ बाप एव भाईयों के जिम्मे ही छोड़ रखा था।

बहुत खोज बिन के बाद उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के माध्यम से चयनित बलिया निवासी जयेंद्र पाल सिंह के सुपत्र धर्मपाल सिंह से नीमा के विवाह तय हुआ ।

पिता राम रतन सिंह एव भाई रिपुदमन एव चंद्रमौलि नीमा के विवाह में कोई कोर कसर नही रखना चाहते थे एक तो पारिवारिक परम्परा एव सम्मान कि मर्यदा के निर्वहन का प्रश्न था तो दूसरी तरफ नीमा के द्वारा लड़की के रूप में स्थापित सामयिक गौरवशाली उपलब्धियों के अनुरूप वैवाहिक स्तर को बनाये रखना दोनों ही मानदंडों पर राम रतन सिंह कमी नही रखना चाहते थे और उन्होंने किया भी ऐसा की सारे जवार में नीमा के वैवाहिक उत्सव के चर्चे थे धर्म पाल सिंह के पिता जयेंद्र पाल सिंह भी बेटे के वैवाहिक समंध से बहुत खुश एव अभिमान कि अनुभूति कर रहे थे आखिर धर्मपाल सिंह एव नीमा के पाणिग्रहण का समय लम्बी प्रतीक्षा के बाद आ ही गया जयेंद्र पाल सिंह बेटे धर्मपाल की बारात लेकर राम रतन सिंह के दरवाजे पहुंचे रतन पाल सिंह ने अपनी क्षमता एव समर्थ में कुछ भी कमी बारात के स्वागत एव जयेंद्र सिंह के बेटे के विवाह कि आकांक्षा नही उठा रखी ।

नीमा और धर्मपाल सिंह का विवाह बड़े धुम धाम के साथ सम्पन्न हुआ नीमा विदा होकर ससुराल गयी बेटी की विदाई के बाद रतन सिंह अच्युता एव भाई रिपुदमन तथा चंद्रमौलि सिंह कि दुनियां में खालीपन सूनापन था जिसकी भरपाई मुश्किल थी क्योकि उस दौर समय मे नीमा जैसी बेटी बहन विरलों को ही नसीब थी ।

पूरे परिवार कि खुशियाँ ही उनसे रूठ कर नीमा के साथ चली गयी हों आखिर नीमा लक्ष्मी का स्वरूप ही थी पूरे घर परिवार में नीमा के विदाई का दर्द साफ झलक रहा था ।

दुनियां का दस्तूर बेटी पराया धन होती है के आगे परिवार के सभी सदस्य मन मार स्वंय को समझाने कि कोशिश करते रहे ।

दिन बिताता गया इधर नीमा के दुल्हन बन घर आने से जयेंद्र पाल सिंह के घर मे जैसे खुशियो की श्रृंखला के रूप में साक्षात लक्ष्मी का ही शुभागमन हुआ हो बहुत लोंगो को जयेंद्र सिंह की किस्मत से ही रस्क होने लगा ।

कहते है ना कि भगवान एव भाग्य कब किसके साथ खड़े हो जाय किससे रूठ जाय कोई नही जानता कोई कर भी क्या सकता था यह तो जयेंद्र पाल सिंह के भाग्य की बात थी।

दिन बीतते गए परिवार की खुशियाँ बढ़ती गयी लेकिन नीमा और धर्मपाल को तो अपनी अपनी जिम्मेदयों को निभाने जाना ही था एक को जिला कोषागार अधिकारी की तो दुसरे को पुलिस उपाधीक्षक कि दोनों की ही नियुक्ति जालौन में थी इधर बेटी की बिदाई से रतन पाल सिंह के परिवार में सूनापन खालीपन था तो बेटे एव लक्ष्मी जैसी बहु के जाने से जयेंद्र पाल सिंह के परिवार में वियोग की उदासी थी।

आखिर नीमा दोनों ही परिवारो के लिए खुशियों कि अनिवार्यता बन गयी थी उसका सबके प्रति व्यवहार भी सबको उसकी तरफ आकर्षित करता लेकिन कोई कर भी क्या सकता था सभी सिर्फ नीमा और धर्मपाल कि खुशियो के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते ।

पुलिस उपाधीक्षक धर्मपाल ईमानदार एव कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी थे आम जनता में बहुत लोकप्रिय एव अपराधियों के लिए काल के समान थे उनका नाम सुनते ही अपराधियो के पसीने छूटने लगते हर अपराधी की यही इच्छा रहती की उसका सामना कभी भी धर्मपाल सिंह से ना हो ।

धीरे धीरे विवाह के तीन चार वर्ष बीत चुके थे नीमा ने बेहद खूबसूरत बेटी को जन्म दिया जिसका नाम बड़े प्यार से नीमा और धर्मपाल ने कावेरी रखा था कावेरी कि किलकारियों से नीमा एव धर्मपाल के घर मे रौनक तो थी ही बाबा जयेंद्रपाल एव नाना रतन सिंह के घर मे भी खुशियों ने दामन फैला रखा था कावेरी कि एक मुस्कान सभी के लिए दुनियां कि सबसे बड़ी नेमत थी ।

धीरे धीरे कावेरी ढाई तीन वर्ष की हो गयी और नीमा दूसरी संतान को जन्म देने वाली थी बहुत पुरानी कहावत है कि भगवान अपने ही चाहने वालो कि परीक्षा लेता है यही सत्य चरितार्थ नीमा के जीवन हुई ।

पुलिस उपाधीक्षक धर्मपाल सिंह की शक्तियों के कारण अपराधियों पर कानून का शिकंजा कसता गया अपराधियों के हौसले पस्त होते चले गए जनता को पुलिस के अच्छे आचरण का सत्यार्थ धर्मपाल के रूप में था लेकिन अपराधियों एव पुलिस विभाग के ही कुछ लोंगों को धर्मपाल की कार्यशैली पसंद नही आ रही थी नतीजन पहले तो धर्मपाल सिंह को येन केन प्रकारेण तोड़ने के लिए प्रलोभन आदि का हथकंडा अपनाया जब बात नही बनी तब खतनाक साजिश रच डाली।

साजिश में मोहकमे के ही कुछ लोंगो को शामिल किया जिनके रसूख एव आमदनी समाप्त सिर्फ धर्मपाल की जनपप्रिय कार्य शैली से हुये थी अतः उनके पास धर्मपाल से निपटने का कोई न्यायप्रिय संवैधानिक रास्ता तो था नही अतः धूर्तता कुटिलता की साजिश षड्यंत्र को अपना हथियार बनाया जिसमे मोहकमे के लोगो ने भी साथ दिया जिससे पुलिस उपाधीक्षक धर्मपाल सिंह बेखबर अपना कार्य करते रहे ।

एक दिन पुलिस कप्तान के कार्यालय में फोन कि घँटी बजी और सूचना दी गयी कि शातिर अपराधी चौक के पास छुपे है पुलिस कप्तान ने तुरंत धर्मपाल को मौके पर पहुँचने का निर्देश दिया धर्मपाल सिंह पूरे दल बल के साथ मौके पर पहुंचे लेकिन उन्हें इस बात का जरा भी इल्म नही था कि जिस पुलिस टीम का वह नेतृत्व कर रहे है उनमें साजिश कर्ता भी सम्मिलित है वह सीधे खुफिया सूचना के बताए स्थान पर पहुँचे पता लगा कि अपराधी गुमटी में छिपे हुए है गुमटी बन्द थी पुलिस टीम जिसका नेतृत्व धर्मपाल कर रहे थे उन्हें लगभग सत्यता की जानकारी थी अतः उन्होंने स्वंय गुमटी का दरवाजा खुलवाने के बजाय धर्मपाल सिंह को ही आगे कर दिया जबकि किसी भी अभियान का नेतृत्व दिशा दृष्टिकोण एव टीम कि ऊर्जा का नेतृत्व करता है और सभी विकल्पों कि समाप्ति पर स्वयं मोर्चे पर खड़ा होता है ।

धर्मपाल के साथ उल्टा हो रहा था टीम के सदस्य साजिश कर्ता जिन पर वो गलती से भरोसा कर बैठे थे ने उन्हें आगे कर गुमटी खुलवाने के लिए कहा और पीछे पूरी टीम ज्यो ही धर्मपाल सिंह ने गुमटी पर जोर जोर पीटना शुरू किया अंदर बैठे अपराधियो ने गुमटी खोलने के साथ अंधा धुंध फायरिंग कर दी धर्मपाल सिंह भी तैयार अवश्य थे किंतु उन्हें इतने भयानक अपराधियों के मूव का अंदाज़ा नही था ।

तबातोड़ फायरिंग से सबसे पहले सामने धर्मपाल सिंह एव उनके पीछे खड़े मुश्तैद सिपाहियो पर मौत का कहर बनकर टूट पड़ा धर्मपाल सिंह तो मौके पर घायल अवस्था मे जमीन पर तड़फड़ा ही रहे थे साथ ही साथ उनके पीछे खड़े सिपाही जो जिम्मेदार एव ईमानदार थे एव जिन्हें साजिश की भनक तक नही थी बारह पंद्रह की संख्या में घायलावस्था में जमीन पर तड़फड़ाता रहे थे।

उस दौर में सांचार सुविधाएं आज की तरह बहुत व्यपक नही थी सिर्फ रेडियो एव प्रिंट मीडिया तथा संभ्रांत घरों में ही दूरदर्शन वह भी सिर्फ राष्ट्रीय चैनल ही था जब भी किसी समाचार घटना कि जानकारी प्राप्त करनी होती लोंगो को रेडियो या समाचार पत्रों पर निर्भर रहना पड़ता ।

इतनी बड़ी घटना के घटित होने के बाद एक ही शहर के एक कोने कि खबर दुसरे कोने तक पहुंचते पहुंचते अनेक भ्रम भ्रांतियों की शिकार हो जाती नीमा को जब इस दुर्घटना कि जानकारी हुई उस पर तो जैसे वज्रपात हो गया ।

उंसे समझ मे ही नही आ रहा था कि क्या कैसे क्यूं इस तरह कि घटना ने उसके खुशहाल जीवन मे बिपत्तिया लेकर अाई।

कुछ भी समझ नही आ रहा था आनन फानन वह घटना स्थल फिर अस्पताल की तरफ गयी जहां डॉक्टरों द्वारा धर्मपाल सिंह को मृत घोषित कर दिया गया उसके जीवन मे पलक झपकते ही अकल्पनीय तूफान ने सब कुछ समाप्त कर दिया।

कभी कभार पति धर्मपाल अपने कार्यो के संदर्भ में जिक्र अवश्य करते लेकिन नीमा को ऐसे हादसे की उम्मीद तक नही थी ।

पुलिस मोहकमे में मुड़भेड़ की चर्चा जोरों पर चल पड़ी सर्वत्र यही चर्चा होने लगी कि पुलिस एव अपराधियों के मुठभेड़ में पुलिस कर्मचारी एव अधिकारी शहीद हुए ।

किसी को यह नही समझ आ रहा था कि शहर एव बस्तियों में पुलिस मुठभेड़ नही होती ना तो घटना स्थल जंगल या वीरान बीहड़ था जहाँ अपराधियों के लिए पनाहगाह हो घटना स्थल जनपद का रिहाईसी इलाका था जहां शहरीकरण एव ग्रामीण दोनों का संयुक्त परिवेश था लेकिन अब कुछ भी संम्भवः नही था।

नीमा की दुनियां उजड़ चुकी थी जयेंद्र सिंह एव रतन सिंह को घटना कि जानकारी हुये तो हतप्रद निःशब्द वेदना में डूब गए सभी के समक्ष एक ही यक्ष प्रश्न था आखिर इतनी बड़ी घटना जनपद मुख्यालय पर कैसे घटित हो गयी इसी प्रश्न का उत्तर सभी जानना चाह रहे थे लेकिन उत्तर किसी के पास नही था ।

इधर पुलिस विभाग ने जांच के आदेश दिए स्थानीय थाने के प्रभारी ने पूरे प्रकरण को पुलिस अपराधियों के मुठभेड़ मानकर किसी भी साजिश से इनकार कर दिया और अपनी आख्या प्रस्तुत कर दी।

नीमा बिल्कुल टूट चुकी थी उसके समक्ष पहाड़ जैसी जिंदगी का कोई उद्देश्य नही नजर आ रहा था इस हादसे के समय नीमा गर्भवस्था में थी कावेरी मात्र ढाई तीन वर्ष की थी नीमा को यह समझ मे ही नही आ रहा था कि अब उसके जीवन का भविष्य एव उद्देश्य क्या होगा आंखों के आंसू सुख गए थे वह सिर्फ देखती जैसे उसकी सुनी आंखे उसके अंतर्मन कि पीड़ा वेदना का दर्पण हो पिता रतन सिंह एव परिवार के लोंगो के पास भी नीमा को दिलाशा देने के लिए कोई ठोस वर्तमान या भविष्य नही प्रतीत हो रहा था।

जयेंद्र सिंह ने बेटा खोया ही था लक्ष्मी बेटी जैसी बहु कि सुनी मांग एव उसका भविष्य सोच कर उनका कलेजा जुबान को आ जाता कावेरी को तो यही नही समझ मे आता कि उसका बचपन कैसे उससे रूठ गया प्रतिदिन पापा का प्यार माँ का दुलार जाने कहाँ खो गया दुःखों के प्रवाह का कोई रास्ता किसी को नही सूझ रहा था सब एक दूसरे को दिलाशा ही देते यह जानते हुए कि कोई रास्ता है ही नही वर्वाद गुलिस्तां को सजाने के लिए।

कहते है वक्त काल समय ही उन समस्याओं प्रश्नों का हल उत्तर दे देता है जो मनुषयः के बस से परे होती है और अपने द्वारा दिये गए जख्मो को मरहम भी वही देता है किसी तरह धर्मपाल सिंह कि अन्त्येष्टि एव अन्य कार्य पूर्ण हुये।

नीमा के जीवन के संघर्ष एव समाज के विकट स्वरूप से लड़ने एव बची जिंदगी में पति के लिए न्याय ही मात्र उद्देश्य था ।

नीमा कि नियुक्ति वाराणसी हुई और पति कि मृत्यु के पांच छ माह बाद उसने दूसरी कन्या को जन्म दिया जिसने अपने आने से पूर्व ही पिता को खो दिया था ।

नीमा के पास धर्मपाल की अमानत दो बेटियाँ थी जिन्हें वह स्वर्गीय पति धर्मपाल के सपनो कि संतान बनाने के लिए संकल्प के साथ जुट गई साथ ही साथ पति को न्याय दिलाने के लिए स्वंय सत्य असत्य न्याय के जंग में कूद पड़ी ।

दूसरी बेटी के जन्म के बाद नीमा जैसे साक्षात नारी शक्ति कि नौ रूपों को स्वंय में आत्मसाथ कर समाज एव वर्त्तमान से अकेले अघोषित संग्राम लड़ रही थी बेटी कल्पना एव कावेरी का लालन पालन अन्य जिम्मेदारियों के साथ एक महिला के लिए बहुत कठिन चुनौती थी जबकि मैके एवं ससुराल पक्ष का नैतिक , भवनात्मक सहयोग नीमा को मिलता रहता फिर भी उसे अपने दुख क्लेश अंतर्मन कि पीड़ा को स्वंय झेलते हुए अपनी लड़ाई पति के लिए न्याय के लिए महत्वपूर्ण एव आवश्यक था ।

छोटी छोटी बेटियों को लेकर कोर्ट कचहरी के चक्कर काटना भारतीय न्याय प्रक्रिया कि जटिल बोझिल प्रक्रियाओं के झंझावतों से रूबरू होना साथ ही साथ समाज के वेधते व्यवहार से छलनी होते अपने मन मस्तिष्क को संतुलित रखना कहते है –

“नारी ज्वाला नारी अंगारा नारी शीतल शौम्य नारी नैतिकता मर्यदा नारी भाव संवेदना नारी कोमल नारी कठोर नारी माता नारी काली युग संसारी।।

नीमा को नारी के सभी अध्यायों आयामो से गुरजना पड़ रहा था सौम्यता विनम्रता बाबुल एव ससुराल के संस्कारो कि मर्यदा कि ड्योढ़ी नही लांघी।

कावेरी एव कल्पना को अच्छी शिक्षा सांस्कार देने के लिए सारे संम्भवः उपलब्ध प्रायास किये समय के साथ हिम्मत हौसलों से अपने वीरान जिंदगी के चमन को गुलजार करने एव न्याय के लिए हर संघर्ष संग्राम से जूझती रही।

समय कि हर परीक्षा से गुजरती रही समय अपनी गति चाल से चलता रहा और नीमा ने पूर्वी उत्तर प्रदेश जिसे पिछड़ा कहा जाता है विशेष कर महिलाओं के संदर्भ में के लिए संघर्ष के अध्याय आयाम से नारी शक्ति के समक्ष एक अविस्मरणीय अनुकरणीय आचरण प्रस्तुत करती रही ।

बुलंद हौसलों का दामन समंदर कि लहरों का सानी पत्थरो के सिनो को चीर निर्झर निकलती।।

मरुस्थल को भी समंदर का पुरष्कार देती कठिन चुनौतियों से लड़ती नीमा दुनियां इतिहास बदलती।।

नीमा पति को न्याय दिलाने के लिए निरंतर प्रयत्न शील रहती ईश्वरीय विधान कुछ और ही सोच रहा था एकाकी जीवन का सुना पन अंतर्मन कि वेदना फूटी और एक नई बिपत्ति को लेकर आई नीमा कैंसर जैसे असाध्य बीमारी से पीड़ित हो गयी वैसे भी उंसका खुशियो और सुखों से बहुत कम दिनों का साथ था।

विवाह एव पति के साथ छूटने तक चार पांच वर्ष बामुश्किल पूरा जीवन दूरुह एव शूलों से भरे रास्तों का संघर्ष बन कर रह गया अब बची खुची कसर कैंसर जैसी बीमारी से लड़ने का संघर्ष जीवन संघर्षो कि पराकाष्ठा कि असह वेदना सम्भवतः ईश्वर ने भी कठिन से कठिन परीक्षाओं कि अति कर दी ।

पति कि मृत्यु के लगभग बाईस वर्षो बाद वर्ष 2004 में कैंशर की पीड़ा जीवन के संघर्षो के जख्म एव देश के बिभन्न न्यायालयों के चक्कर काटती पति के लिए न्याय कि अधूरी आशा लेकर दो बेटियों को छोड़ जाने कहा चली गयी यदि जीवन सत्य है तो मृत्यु उसका आवरण लेकिन नीमा का जीवन भी मृत्य पीड़ा के समान ही था नीमा चली गयी लेकिन बहुत से अनुत्तरित प्रश्नों को समय समाज के समक्ष छोड़ गई जिसका जबाब समय एव समाज ने कभी जानने कि कोशिश नही की नीमा के नारी अंतर्मन की व्यथा वेदना उसके सुखी आंखे छटपटाहट पति धर्मपाल कि आवनी पर अंतिम छटपटाहट को ही संदर्भित वर्णित करते प्रश्न करते रहे न्याय मांगते रहे।

माँ कि मृत्यु के बाद कावेरी एव कल्पना के समक्ष माँ के अधूरे सपने एव पिता के लिए न्याय महत्त्वपूर्ण थे कावेरी ने दिल्ली के श्रीराम लेडी कालेज से स्नातक कि शिक्षा प्राप्त किया था कावेरी एव कल्पना ने माँ नीमा की अन्तर्रात्मा के भवों के घांवो को बहुत करीब से महसूस किया एवं जिया था।

बेतिया माँ के प्रत्येक पल प्रहर कि साक्ष्य स्वंय थी अतः उनका नैतिक कर्तव्य भी था कि कम से कम माँ एव पिता को उनके कर्मों कि उपलब्धियों से शांति मीले एव उनका नाम उनके भौतिक शरीर मे ना रहते हुए भी समाज के लिए आदर्श प्रेरणा बने ।

कावेरी एव कल्पना एक साथ दिल्ली में रहकर अपने माँ बाप के सपनो की वास्तविकता के लिए संघर्ष का शुभरम्भ किया सारे सुख दुख भूल कर एक मात्र लक्ष्य स्वंय को माँ बाप के अभिलाषाओं एव आकांक्षाओ कि कसौटी पर प्रमाणित प्रस्तुत करना।

ईमानदार सोच निष्काम कर्म किसी भी उद्देश पथ के भयंकर अंधकार को समाप्त कर उजियार का मार्ग प्रसस्त करते है –

उद्देश्यों के उत्साह का पथिक तूफानों भवरों लहरों कि नाव का नाविक।।

उद्देश्य पथ को मोड़ देता समय संसार मे नव अध्याय आयाम सृजन करता काल समय स्वंय स्वागत कर चिराग रौशन करता।।

कावेरी एव कल्पना ने प्रमाणित कर दिया कि असम्भव कुछ भी नही नीति नियत को भी बदलने की क्षमता मानव में ही होती है नारी मानव समाज कि मूल अवयव अवधारणा कि शक्ति समर्थ है अतः उसके लिए काल समय को नई पहचान देना असम्भव नही है ।

हुआ भी यही कावेरी ने वर्ष 2008 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में सम्मान जनक स्थान पाकर माँ बाप को गौरवान्वित किया तो कल्पना ने भरतीय राजस्व सेवा में चयनित होकर दोनों बहनों ने अपने दृढ़ संकल्प परिश्रम से जन्म देने वालो को तो महिमा मंडित किया ही अपने जन्म स्थान एव समाज को गौरवशाली एव गरिमा प्रदान किया ।

2013 में तीस वर्षों कि लम्बी कानूनी प्रक्रिया के बाद न्यायलय द्वारा पिता धर्मपाल के कथित मुठभेड़ के मामले में न्यायलय का निर्णय आया जिसमें आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा न्यायालय द्वारा सुनाई गई जिनको सजा सुनाई गई उनमें कुछ तो मर चुके थे ।

इस न्याय का कोई बहुत महत्व कावेरी कल्पना के लिए नही था क्योकि निर्णय में न्याय ऊबाऊ लंबी प्रक्रिया के बाद आया था जो न्याय नही कहा जा सकता सिवा इसके की माँ नीमा कि आत्मा को शांति मिली होगी ।

आज कावेरी कल्पना को हर व्यक्ति बड़े अभिमान से अपने गांव क्षेत्र परिवार का बता कर अभिमानित महसूस करता है।
कल्पना कि नियुक्ति सहायक आयकर आयुक्त पद पर हरियाणा में ही है ।

प्रति दिन सूरज उसी तरह निकलता है जिस तरह धर्मपाल की मृत्यु के दिन एव नीमा के अंतिम सांस के दिन निकला था फर्क सिर्फ है तो यही की अब सूरज निकलता है तो नीमा धर्मपाल के ब्रह्मांड में विलीन अस्तित्व कि प्रत्यक्ष आभा कि किरणों काबेरी एव कल्पना कि चमक तेज के साथ।।

कहानीकार –
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।

Language: Hindi
Tag: कहानी
48 Views
You may also like:
💐Prodigy Love-34💐
💐Prodigy Love-34💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
रोजी न रोटी, हैं जीने के लाले।
रोजी न रोटी, हैं जीने के लाले।
सत्य कुमार प्रेमी
मोहब्बत कर देती है इंसान को खुदा।
मोहब्बत कर देती है इंसान को खुदा।
Surinder blackpen
Which have the power to take rebirth like the phoenix, whose power no one can ever match.
Which have the power to take rebirth like the phoenix,...
Manisha Manjari
रंगों  में   यूँ  प्रेम   को   ऐसे   डालो   यार ।
रंगों में यूँ प्रेम को ऐसे डालो यार ।
Vijay kumar Pandey
Writing Challenge- साहस (Courage)
Writing Challenge- साहस (Courage)
Sahityapedia
मर जाऊँ क्या?
मर जाऊँ क्या?
Abhishek Pandey Abhi
दर्द  बहुत  गहरा   हो   जाता   है
दर्द बहुत गहरा हो जाता है
Anil Mishra Prahari
मृदुल कीर्ति जी का गद्यकोष एव वैचारिक ऊर्जा
मृदुल कीर्ति जी का गद्यकोष एव वैचारिक ऊर्जा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
तेरे मेरे रिश्ते को मैं क्या नाम दूं।
तेरे मेरे रिश्ते को मैं क्या नाम दूं।
Taj Mohammad
वैलेंटाइन डे पर कविता
वैलेंटाइन डे पर कविता
Shekhar Chandra Mitra
🌲प्रकृति
🌲प्रकृति
Pt. Brajesh Kumar Nayak
मुझें ना दोष दे ,तेरी सादगी का ये जादु
मुझें ना दोष दे ,तेरी सादगी का ये जादु
Sonu sugandh
🧑‍🎓मेरी सफर शायरी🙋
🧑‍🎓मेरी सफर शायरी🙋
Ankit Halke jha
दूर हो के भी
दूर हो के भी
Dr fauzia Naseem shad
उसने कौन से जन्म का हिसाब चुकता किया है
उसने कौन से जन्म का हिसाब चुकता किया है
कवि दीपक बवेजा
याद तो हैं ना.…...
याद तो हैं ना.…...
Dr Manju Saini
आदत में ही खामी है,
आदत में ही खामी है,
Dr. Kishan tandon kranti
*दुबका लिहाफ में पड़ा हुआ (घनाक्षरी)*
*दुबका लिहाफ में पड़ा हुआ (घनाक्षरी)*
Ravi Prakash
कैसा समाज
कैसा समाज
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
दिनांक:-२३.०२.२३.
दिनांक:-२३.०२.२३.
Pankaj sharma Tarun
लावणी छंद
लावणी छंद
Neelam Sharma
कैसे मैं याद करूं
कैसे मैं याद करूं
Anamika Singh
धुँधली तस्वीर
धुँधली तस्वीर
DrLakshman Jha Parimal
अबला नारी
अबला नारी
Buddha Prakash
सजल
सजल
Dr. Sunita Singh
गिर गिर कर हुआ खड़ा...
गिर गिर कर हुआ खड़ा...
AMRESH KUMAR VERMA
■ आज का शेर....
■ आज का शेर....
*Author प्रणय प्रभात*
दोहे नौकरशाही
दोहे नौकरशाही
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
अपने शून्य पटल से
अपने शून्य पटल से
Rashmi Sanjay
Loading...