अमर कोंच-इतिहास

मुक्तक
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कोंच भी आनंद-पथ सह ध्यान है ।
क्रौंच ऋषि -आलोक का प्रतिमान है ।
राष्ट्रहित में बढे पग, फिर ना रुके ।
वीरता के गान का सोपान है ।
राष्ट्हित में वीरता के हाथ बन ।
झाँसी की रानी के थे सब साथ जन ।
लड़े पृथ्वीराज,बैरागढ पहुँच ।
चौंड़िया था साथ,बल का क्वाथ बन ।
गीत
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अमर कोंच-इतिहास यहाँ पर पृथ्वीराज-निवास,
रहा,संग में चंद्रभाट ने आकर किया प्रवास ।
महायुद्ध की शंका आए चंद्रभाट सँग भूप ।
क्रौंच सु ऋषि-तपभू खुदवायी, समरभूमि -अनुरूप ।
चंद्रभाट कवि-कूप के लिए पत्थर लिया तराश ।
अमर कोंच-इतिहास यहाँ पर पृथ्वीराज-निवास,
रहा, संग में चंद्रभाट ने आकर किया प्रवास ।
झील बँट गई दो तालों में,अब भी हैं अवशेष ।
ताल भुजरिंयाँ इक तो दूजा चौड़ा ताल ‘ बृजेश ‘।
बारह खंभा,*’बड़ माता-गृह’ का भी हुआ विकास ।
अमर कोंच-इतिहास यहाँ पर पृथ्वीराज-निवास,
रहा,संग में चंद्रभाट ने आकर किया प्रवास ।
सैन्य प्रशिक्षण चरमरूप पर लड़ते ज्यों दो राज ।
**’बैरागढ’ रणभूमि बनेगी,पहनू विजयी ताज ।
सीखें सभी वीर रण-कौशल, करें जीत की आश ।
अमर कोंच-इतिहास यहाँ पर पृथ्वीराज-निवास,
रहा,संग में चंद्रभाट ने आकर किया प्रवास ।
वीरों ने स्व ध्वज फहराया महायुद्ध के पहले ।
बावन गढों का रण होगा, सुनकर के दिल दहले ।
महायुद्ध के खातिर कीन्हा दिल्ली-भूप-प्रवास ।
अमर कोंच-इतिहास यहाँ पर पृथ्वीराज-निवास,
रहा ,संग में चंद्रभाट ने आकर किया प्रवास ।
सारी पैदल सैना ***’निरझर सागर’ निकट खड़ी थी ।
गज, घोडा व हथियारों से पटी हुई धरती थी ।
रथ के ऊपर राजा बैठे कोंच हो गई खास ।
अमर कोंच-इतिहास यहाँ पर पृथ्वीराज-निवास,
रहा,संग में चंद्रभाट ने आकर किया प्रवास ।
दिल्ली के राजा पृथ्वी ने परखे शस्त्र विशेष ।
इसके पहले ‘क्रौंच सु ऋषि’ ने दिया प्रेम-संदेश ।
प्रीतिभाव-सद्ज्ञान -वीरता का है यहाँ प्रकाश ।
अमर कोंच-इतिहास यहाँ पर पृथ्वीराज-निवास,
रहा,संग में चंद्रभाट ने आकर किया प्रवास ।
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*’बड़ माता-गृह’=बड़़ी माता का मंदिर
(भारतवर्ष में उत्तर प्रदेश प्रांत के जिला-जालौन में स्थित “कोंच नगर” (क्रौंच ऋषि की तपोभूमि) का सबसे प्राचीन मंदिर ,”नरसिंह भगवान” का मंदिर” है| “नरसिंह भगवान” के मंदिर के बाद ,कोंच नगर का दूसरा प्राचीन मंदिर “बड़ी माता का मंदिर”है )
**बैरागढ = कोंच से एट मार्ग होते हुए,एट के पहले बैरागढ -मार्ग पकड़ कर ‘बैरागढ’ पहुँचा जा सकता है| ‘बैरागढ’ जिला-जालौन ,उ प्र,भारत,मे एट के समीप स्थित है| बैरागढ में माँ शारदा का पावन मंदिर है, इसी मंदिर के आस-पास खाली पड़ी जमीन पर ‘बावन गढ़ की लड़ाई’ हुई थी| इस महा युद्ध में (बावन गढ़ों की लड़ाई में) युधिष्ठिर के अवतार, वीर आल्हा ने जमीन में एक साँग गाड़ दी थी ,जो आज भी गड़ी हुई है | महोवा के वीर योद्धा ,युधिष्ठिर एवं भीमसेन के अवतार आल्हा एवं ऊदल की वीरता की खुशी में ,’माँ शारदा’ के मंदिर पर अभी भी प्रति वर्ष मेला लगता है|
***’निरझर सागर’ =निरझर से मिला हुआ बड़ा तालाब
{बैरागढ के महा संग्राम(बावन गढ की लड़ाई) में चौंड़िया राय की मृत्यु , दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान की पराजय एवं महोवा के वीर योद्धा ,युधिष्ठर के अवतार, आल्हा की विजय के बाद ‘निरझर सागर’ चंदेल वंश के राजा श्री परमल/ श्री परमाल (परमर्दिदेव) के शासन में चला गया, परमल/परमाल(परमर्दिदेव) के शासन -काल में ‘निरझर सागर’, निरझर से पृथक हुआ, जो आज भी कोंच,जिला-जालौन, उ प्र, भारतवर्ष में ‘सागर ताल’ के रूप में विद्यमान है |}
-चंदेल वंश के राजा परमल/परमाल( परिमर्दिदेव )की पत्नी ‘मल्हना’ ने महोवा के वीर योद्धा ‘ ऊदल ‘ का पुत्र की तरह पालन-पोषण किया था |
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‘अमर कोंच-इतिहास’ रचना, मेरी कृति/शोधपरक ग्रंथ/खंड काव्य “क्रौंच सु ऋषि आलोक” के द्वितीय संस्करण में पृष्ठ संख्या 63 से 66 तक पढी जा सकती है ।
“क्रौंच सु ऋषि आलोक” कृति का द्वितीय संस्करण अमेजोन और फ्लिप्कार्ट पर उपलब्ध है ।
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पं बृजेश कुमार नायक
‘जागा हिंदुस्तान चाहिए’, ‘क्रौंच सु ऋषि-आलोक’ एवं ‘पं बृजेश कुमार नायक की चुनिंदा रचनाएं’ कृतियों के प्रणेता ।
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चंदेल वंश के राजा, परमल/परमाल/परिमर्दिदेव का शासन-काल 1165 से 1203 तक रहा
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