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19 Jun 2019 · 1 min read

#ग़ज़ल-23

चलते-चलते राहों का मैं सरदार हो गया हूँ
अब हर मुश्क़िल से लड़ने को तैयार हो गया हूँ/1

आँधी क्या रोकेगी मुझको गोली हुए चला हूँ
मंज़िल पर रूकूँगा ऐसी रफ़्तार हो गया हूँ/2

संकट के चाहे कितने आएँ तीर ना झुकूँगा
तप के शोलों में लोहे की दीवार हो गया हूँ/3

उनकी चाहत है जीवन भर करता रहूँ गुलामी
डरता था कल चीखों से अब ललकार हो गया हूँ/4

मेरे आगे खुदगर्ज़ों की औक़ात ही दिखेगी
मैं अपने रुह-मन से इतना खुद्दार हो गया हूँ/5

झुक जाते हैं सिर या कट जाते देख हमीं को
सच्चाई की वो तूफ़ानी तलवार हो गया हूँ/6

लेते हैं क़समें अब तो मेरे नाम की यहाँ सब
अपने कर्मों से मैं उनका संस्कार हो गया हूँ/7

मिलता है जो दिल से हो जाता हूँ सदा उसी का
कहते हैं अब तो सारे मैं दिलदार हो गया हूँ/8

देवी है जो पूजा करती है देवता बनाकर
उसका कुमकुम बिंदी सौलह शृंगार हो गया हूँ/9

वो कहते हैं तेरी ग़ज़लों में ताज़गी लगे है
सीधा दिल में उतरे मैं वो अशआर हो गया हूँ/10

मैं शशि हूँ ना सूरज ना ही रब महान कोई
फिर भी लोगों की आँखों का दीदार हो गया हूँ/11

“प्रीतम” तेरा सादापन खींचे जा रहा क़सम से
मैं दिल से चाहत में इश्क़े-इज़हार हो गया हूँ/12

-आर.एस.’प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित..radheys581@gmail.com

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