अब तक मैं

अब तक मैं,
सींच रहा था तेरा उपवन,
ईमान और उम्मीद से,
अपने खून और पसीने से,
यह अरमान लिये कि,
एक दिन तुम्हारे हृदय में भी,
खिलेगा प्रेम का सुमन,
नवप्रीत के साथ नवरस लिए।
अब तक मैं,
मिल रहा था सभी से,
बड़े गर्व से इस प्रकार,
जैसे कि पाने वाला हूँ मैं,
कोई बड़ी सफलता और मंजिल,
इस मतलबी दुनिया में।
मगर मुझको अब लग रहा है कि,
नहीं है शेष अब कुछ भी,
तुम हो चुके हो अब,
निर्जीव और निष्प्रयोजनीय,
जिसमें कभी पैदा नहीं हो सकती,
करुणा, संवेदना और गति।
अब तो तुमने थाम लिया है,
हाथ किसी और का,
बन गए हो ख्वाब अब,
तुम किसी और की जिंदगी का,
और हंस रहे हो तुम बहुत,
तुम्हारी सोच और चालाकी पर,
मैं क्यों अपना सिर नीचा करुँ,
अपने कथनी और करनी पर।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)