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24 Apr 2020 · 1 min read

अब क्या करें

शाम भी है बेअसर अब क्या करें
रात भी अपने डगर अब क्या करें

ज़िंदगी जिसकी दिवानी हो चली
मिल न पाई वो नज़र अब क्या करें

आँखों से उनकी नशा जो कर लिया
मयकशी भी बेअसर अब क्या करें

ज़ाम ये खाली पड़े कुछ कह रहे
दर्द था भारी मगर अब क्या करें

याद में इतना अगर हम खो गए
जागते होगी सहर अब क्या करें

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