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18 Apr 2020 · 1 min read

अफवाहें भी ख़बर बन जाती है

अफवाहें भी ख़बर बन जाती है
ज़िन्दगी जीने का सबक बन जाती है
सच अक्सर छुप जाता है,अखबारों में
झूठ,फ़रेब बिकता है सरेआम बाज़ारो में

चारों और झूठ की मंडी सज़ती है
अंधी कानून व्यवस्था चोरो की बस्ती है
बस्ती में बैठे कानून के रखवाले है
चंद टुकड़ों में जो बिकने वाले है

वहशी,गुंडे सारे सत्ता लोभी हो जाते है
स्वार्थ के ख़ातिर संविधान को भूल जाते है
संविधान इनके हाथों की कठपुतली बन जाता है
लाचार जनता का दुःख कौन समझ पाता है

जनता बेचारी भूखी मर जाती है
दाने दाने के लिए तरसती नज़र आती है
अनाज़ रोपा जाता था कल तक जिस मिट्टी में
हाड़ मांस के पुतले आज मिल जाते है उस मिट्टी में

भूपेंद्र रावत
18।04।2020

Language: Hindi
Tag: कविता
3 Likes · 6 Comments · 193 Views

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