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23 Mar 2022 · 1 min read

अपनों से न गै़रों से कोई भी गिला रखना

अपनों से न गै़रों से कोई भी गिला रखना
आँखों को खुला रखना होठों को सिला रखना

जो ज़ख्म मिला तुमको अपने ही अज़ीज़ों से
क्या ख़ूब मज़ा देगा तुम ज़ख्म छिला रखना

मासूम बहुत हो तुम दुनिया की निगाहों में
तकलीफ़ उठाकर भी चेहरे को खिला रखना

दो दिन की मुसीबत में जो छोड़ गये तुमको
तुम ऐसे हबीबों से हर्गिज़ न गिला रखना

यह दौरे- सियासत है, इसमें ये रिवायत है
गो दिल न मिलें फिर भी तुम हाथ मिला रखना

– शिवकुमार ‘बिलगरामी’

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